॥ दोहा ॥
श्री विश्वनाथ प्रभुणे वंदु,
चरण कमल धारी ध्यान।
श्री शंभु बल अरु श्रीप गन
दीजे दया निधान॥
॥ चौपाई ॥
जय जय श्री विश्वकर्मा भगवाना।
जय जय श्री विश्वेश्वर कृपा निधाना॥
श्रीलपाचार्य परम उपकारी।
भुवन पुत्र नाम गुणकारी॥
अष्टम बसु सुत नगर।
श्रीलप ज्ञान जग किवु उजागर॥
अदभुत सकल सृष्टि कर्ता।
सत्य ज्ञान श्रुति जग हीत धारता॥
अतुल तेज तुम्हारो जग माँहि।
कोई विश्व महि जानत नाहिं॥
विश्व सृष्टि कर्ता विश्वेशः।
अदभुत वरण विराज सुवेषा॥
एकानन पंचानन राजे।
द्विभुज चतुर्भुज दशभुज काजे॥
चक्र सुदर्शन धरण कीधा।
वारि कामदल हाथमा लीधा॥
श्रीलप शास्त्र अरु शंख अनुपम।
सोहे सूत्र गजमाप अनुपा॥
धूइनुष्य बाण त्रिशूल सोहे।
नवले हाथ कमल मन मोहे॥
विविध शास्त्र सहित मन्त्र अपरा।
वीरचेहु टर्न समस्त संसारा॥
दिव्य सुगंधित सुमन अनेका।
विविध महाऔषध सविवेक॥
शम्भु वीरचि विष्णु सुरपाला।
वरुण कुबेर असि महाकाल॥
तुम्हारे ढिंग सब मिलकर गाववु।
कारी प्रमाण अस्तुति कवावु॥
मेई प्रसन टर्न लखि सूर सौका।
किववु काज सब भये अशोका॥
दर्श्वा वरद हस्त जग हेतु।
अतिभव सिंधु मही वी सेतु॥
सूरज तेज हरण तुमने कीवु।
ऐशट्रे शास्त्र जेसे नीरमेवु॥
चक्र शक्ति व्रज त्रिशूल एको।
दंड पाशा और शस्त्र अनेका॥
विष्णुहि चक्र त्रिशूल शंकरहि।
अजहि शक्ति दण्ड यमराजहि॥
इंद्र हे व्रज वरुण हे पाशा।
तुमने सबकी पुरान की आशू॥
भाति भाति के ऐशट्रे रचये
सत पंथको प्रभु सदा बचाये॥
अमृत घाट के मोड़ निर्माता।
साधु संत भक्तनके सूर त्राता॥
लोह, काश्त, त्रंब पाषाण:।
सुवर्ण श्रीलप के परम सुजाना॥
विद्युत अग्नि पवन भू वारि।
इनके काज अद्भुत संवरी॥
आनपान हीत भजन नाना।
भुवन विभुश्रित विविध विधाना॥
रिद्धि सिद्धि के मोड़ वरदाता।
वेद ज्ञान के आप ज्ञाता॥
शृल्पी, त्वष्टा, मनु, मय, तक्ष।
सबकी नीत करते प्रभु रक्षा॥
पंच पुत्र नीत जग हीत कर्ता।
कर निष्काम कर्म निज धर्मा॥
तुम्हारे सम कोई कृपादु नाहीं।
विपदा हरे सदा जग माहीं॥
जय जय श्री भुवना विश्वकर्मा।
कृपा करे श्री गुरुदेव सुधर्मा॥
श्रीव अरु विश्वकर्मा मही।
विज्ञानी कहे अन्तर नहीं॥
बारने कौन स्वरूप तुम्हारा।
सकल सृष्टि को आपन विस्तारा॥
रचेवु विश्व हीत त्रिविध शरीरा।
तुम बिन कौन हरे भव पीरा॥
मंगल मूल भुवन भय हारि।
शेक रहित त्रिलोक विहारी॥
चारो जोग प्रताप तुम्हारा।
ते हे प्रसीद जगत उजियारा॥
एकशो आठ जप करे कोई।
नाशो विपति महा सुच कोई॥
पढ़िए जो विश्वकर्मा चालीसा।
होइ सिद्ध सखी गौरीशा॥
विश्व विश्वकर्मा प्रभु मेरे।
हो प्रसन्न हम बालक तेरे॥
माई हू सदा उमापति चेरा।
सदा करो प्रभु मन मह डेरा॥
॥ दोहा ॥
करहु कृपा शंकर सरिस,
विश्वकर्मा शिवरूप।
श्री शुभदा रचना साहित,
हृदय बसहु सुर भूप॥
विश्वकर्मा चालीसा – Vishwakarma chalisa