हर माह की दोनों एकादशी तिथियां भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित हैं। भक्त एकादशी का व्रत रखकर विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी परिवर्तिनी एकादशी कहलाती है। इस वर्ष परिवर्तिनी एकादशी का व्रत 14 सितंबर, शनिवार को रखा जाएगा। परिवर्तिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस एकादशी के व्रत की कथा पढ़ना बेहद शुभ होता है। यहां पढ़ें परिवर्तिनी एकादशी की व्रत कथा और पूजा करें संपन्न।
* परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत काल में पांडव भाइयों में सबसे बड़े युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत के बारे में पूछा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें ब्रह्मा जी के नारद मुनि को सुनाई एक कथा सुनाई। नारद जी ने ब्रह्मा जी से पूछा था कि भाद्रपद की एकादशी को भगवान विष्णु के किस रूप की पूजा की जाती है। ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को बताया कि भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान हृषिकेश की पूजा होती है।
उन्होंने बताया कि सूर्यवंश में मान्धाता नाम का एक चक्रवती और महा प्रतापी राजर्षि हुआ करता था। उसके राज्य में सभी सुखी थे। एक बार कर्म फल के कारण उसके राज्य में तीन वर्ष तक अकाल पड़ा। प्रजा के निवेदन पर मान्धाता अकाल का कारण जानने निकल पड़े। इस दौरान उनकी मुलाकात अंगिरा ऋषि से हुई और उन्होंने अपनी परेशानी उन्हें बताई और उसका कारण जानना चाहा।
अंगिरा ऋषि ने बताया कि सत्य युग में केवल ब्राह्मण ही तपस्या कर सकते हैं लेकिन तुम्हारे राज्य में एक शुद्र तपस्या कर रहा है। मान्धाता ने कहा मैं तपस्या करने के लिए उसे दंड नहीं दे सकता। तब ऋषि अंगिरा ने उन्हें भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी। इसके बाद मान्धाता लौट आए और प्रजा के साथ भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखा। इसके बाद राज्य में वर्षा होने लगी और सभी समस्याओं का अंत हो गया। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि परिवर्तिनी या पद्मा एकादशी का व्रत रखने और कथा सुनने से सभी प्रकार के पाप कट जाते हैं।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है।)
इस कथा के बिना परिवर्तिनी एकादशी व्रत की पूजा अधूरी मानी जाती है।
The worship of parivartini ekadashi fast is considered incomplete without this story