भगवान इंद्र देव की कहानी 

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भगवान इंद्र देव की कहानी 

हिन्दू धर्म में तैतीस करोड़ देवताओं की बात कही जाती है. इन सभी के स्वामी इंद्र थे. जिन्हें देवलोक का स्वामी माना गया हैं. धर्मग्रंथों में संभवतः अधिकतर कहानियों में देवराज इंद्र का उल्लेख अवश्य ही आता हैं. बहुत बार खलनायक के रूप में तो कभी लाचारी के रूप में भगवान इंद्र को पेश किया जाता हैं. एश्वर्य भोग की जिदंगी में व्यस्त इंद्र के सिंहासन पर हर समय विरोधियों की नजर रहा करती थी. चलिए आज की कहानी में आपकों देवराज इंद्र से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी व इतिहास बताते हैं.

आजकल जब हम इंद्र की बात करते है तो वह अधिकतर पौराणिक कथाओं में होता हैं. वह इंद्र जो स्वर्ग में रहता है, अप्सराओं और गन्धर्वों से घिरा रहता है. सोमपान करता है, एरावत पर बैठा है जिसके साथ में वज्र है और जिसके गुरु का नाम ब्रहस्पति हैं.

एक ऐसा अय्यास राजा जो असुरो से डरता है और हमेशा ब्रह्मा से असुरों का संहार करने का कोई न कोई उपाय पूछता रहता हैं. वह ऋषियों से भी डरता हैं. और उनकी तपस्या को भंग करने के लिए अप्सराओं को भेजता है. वह उन राजाओं से भी डरता है जो यज्ञ करते है और वह उनके घोड़े चुरा लेता हैं.

अर्थात हमें इंद्र की बतौर एक असुरक्षित राजा की कथा प्राप्त होती हैं. ये पौराणिक कथाएँ करीब 1500 वर्ष पुरानी हैं. जब पुराण लिखे गये थे. लेकिन इसके २२०० वर्ष पहले जब हम वेदकालीन इंद्र के बारे में सोचते है तब उनका एक अलग ही रूप दिखाई देता हैं.

पौराणिक इंद्र, विष्णु, शिव और दुर्गादेवी से प्रार्थना करते है वह अपनी रक्षा के लिए, लेकिन वे ऋग्वेद के रक्षक भी है. वे वृत्र और वाला जैसे असुरों के साथ अपने व्रज से युद्ध करते हैं. और पानी व नदियों को घेरने वाली बाधाओं से मुक्त करते है अर्थात वे जल को मुक्त करने का काम करते हैं. इंद्र को लेकर रची गई कविताओं या वैदिक संहिताओं में इंद्र की प्रशंसा ही की गई हैं.

यहाँ पर इंद्र एक बड़े शक्तिशाली यौद्धा हैं. वे युद्ध से नहीं डरते हैं. यहाँ पर न स्वर्ग का वर्णन है न ऐरावत का और न ही उनकी असुरक्षित भावना का. वैदिक और पौराणिक काल के बीच हमें बौद्ध, जैन और तमिल परम्पराओं के बारे में पता चलता हैं. 2000 वर्ष पूर्व हमें बौद्ध जैन एवं तमिल ग्रंथों में इंद्र का वर्णन मिलता हैं.

लेकिन ये इंद्र न तो वैदिक इंद्र जैसे है न हि पौराणिक इंद्र जैसे हैं. बौद्ध ग्रंथों में इंद्र को शक्र कहा गया हैं. कहते है कि जब बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ तब वे ब्रह्मा के साथ इंद्र के सामने प्रस्तुत हुए. और उनसे एक इच्छा प्रकट की कि के अपने ज्ञान का प्रचार विश्व भर में करे. इंद्र के स्वर्ग को ३३ देवताओं का स्वर्ग माना जाता हैं. जो मेरु पर्वत के ऊपर हैं. वेदों में इंद्र की पत्नी का नाम इंद्राणी बताया जाता हैं.

असुरों के साथ इंद्र के हमेशा युद्ध और मतभेद होते रहते हैं. जैन ग्रंथों में इंद्र को हमेशा तीर्थकरों की सेवा करते दिखाया गया हैं. इंद्राणी या सची के साथ. जब किसी तीर्थकर का जन्म होता है तब उस घटना स्थल पर इंद्र हमेशा प्रस्तुत होकर उनकी सेवा करते हैं. मन्दिरों में भी वे सेवक के रूप में दिखाए गये हैं. इसका अर्थ है वे देवों के राजा है लेकिन जैन तीर्थकरों के सेवक.

तमिल ग्रंथों में वरुण को समुद्र का देवता माना गया हैं. मुरुगन को पहाड़ों का देवता तो इंद्र को मैदानों का देवता. मरु भूमि मरुस्थल को काली देवी के साथ जोड़ा गया हैं. और जंगलों को विष्णु के साथ. यहाँ पर इंद्र का अधिक वर्णन न होते हुए भी वे एक क्षेत्र से जुड़े हुए है न की पानी या स्वर्ग से.

इस प्रकार पांच प्रकार के इन्द्रों का वर्णन मिलता हैं. वैदिक काल के इंद्र, पौराणिक काल के इंद्र, बौद्ध धर्म के इंद्र, जैन धर्म के इंद्र और तमिल परम्परा के इंद्र. कौन से इंद्र सत्य है, आजकल ऐरावत वाले इंद्र को हम ज्यादा सत्य मानते हैं. जो शिव विष्णु एवं अन्य देवों की आराधना करते हैं.

इंद्र के कोई मन्दिर नहीं होते, लेकिन इंद्र की सबसे पुरानी छवि हमें पुणे के पास भाजा नामक एक बौद्ध गुफा में मिलती हैं. यह गुफा लगभग २२०० वर्ष पुरानी हैं. और यहाँ पर इंद्र ऐरावत के ऊपर बैठे दिखाई देते हैं. संभवतः यह ऐसी पहली छवि होगी, जिसमें वे ऐरावत पर बैठे हैं.

इन्द्र के भाई

हिमयुग के दौर में मेघ अर्थात बादल तथा जल को सबसे अधिक विनाशक माना जाता था. मेघ के अधिष्ठाता देव इंद्र जी तथा जल के देव वरुण थे. ये दोनों भाई हुआ करते थे. इंद्र भगवान के कई सारे भाई थे जिनमें विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इन्द्र और त्रिविक्रम आदि थे, ये सुर या देवताओं की श्रेणी में गिने जाते थे.

भगवान इंद्र के स्तौले भाई असुर प्रवृत्ति के थे, जिनमें दो भाइयों हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष का नाम प्रमुखता से लिया जाता हैं. इनके एक बहन भी मानी गई है जिनका नाम सिंहिका था.

इन्द्र के माता-पिता पत्नी और पुत्र
भारत में कही भी इंद्र की पूजा नहीं होती हैं, हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण से पूर्व उत्तर भारत में इन्द्रोत्सव मनाया जाता था, मगर भगवान कृष्ण ने इसे बंद करवाकर गोपोत्सव, रंगपंचमी और होलीका की शुरुआत कर दी थी. कृष्ण के अनुसार ऐसे इंसान की पूजा व्यर्थ है जो ईश्वर के तुल्य न हो.

अगर इंद्र के पिता की बात करे तो उनका नाम कश्यप माँ का नाम अदिति, सौतेले भाइयों की माँ का नाम दिति था. ऋषि कश्यप की 13 पत्नियाँ थी पहली रानी अदिति के पुत्र आदित्य कहलाए दिति के पुत्र दैत्य कहलाएं. इसी तरह दनु के दानव, अरिष्टा के गन्धर्व, सुरसा के राक्षस और कुद्रू के नाग कहलाएं.

बात करें इनकी पत्नी की तो इन्द्र की पत्नी शचि थी जो असुरराज पुलोमा की बेटी थी, विवाह के बाद इसे इंद्राणी कहा गया. इनके पुत्रों का उल्लेख वेदों में भी देखने को मिलता हैं.