श्री शाकंभरी चालीसा – Shri shakambhari chalisa

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श्री शाकंभरी चालीसा - Shri shakambhari chalisa

॥ दोहा ॥

 

बन्दउ माँ शाकम्भरी चरणगुरू का धरकर ध्यान, शाकम्भरी माँ चालीसा का करे प्रख्यान ॥


आनंदमयी जगदम्बिका अनन्तरूप भण्डार, माँ शाकम्भरी की कृपा बनी रहे हर बार ॥


॥ चालीसा ॥


शाकम्भरी माँ अति सुखकारी, पूर्ण ब्रह्म सदा दुःखहारी ॥


कारण करण जगत की दाता, आंनद चेतन विश्वविधाता ॥


अमर जोत है मात तुम्हारी, तुम ही सदा भगतन हितकारी ॥


महिमा अमित अथाह अपर्णा, ब्रह्म हरी हर मात अपर्णा ॥


ज्ञान राशि हो दीन दयाली, शरणागत घर भरती खुशहाली ॥


नारायणी तुम ब्रह्म प्रकाशी, जल-थल-नभ हो अविनाशी ॥


कमल कान्तिमय शान्ति अनपा, जोतमन मर्यादा जोत स्वरूपा ॥


जब जब भक्तों ने है ध्याई, जोत अपनी प्रकट हो आई ॥


प्यारी बहन के संग विराजे, मात शताक्षि संग ही साजे ॥


भीम भयंकर रूप कराली, तीसरी बहन की जोत निराली ॥


चौथी बहन भ्रामरी तेरी, अद्भुत चंचल चित्त चितेरी ॥


सम्मुख भैरव वीर खड़ा है, दानव दल से खूब लड़ा है ॥


शिव शंकर प्रभु भोले भण्डारी, सदा रहे सन्तन हितकारी ॥


हनुमत माता लौकड़ा तेरा, सदा शाकम्भरी माँ का चेरा ॥


हाथ ध्वजा हनुमान विराजे, युद्ध भूमि में माँ संग साजे ॥


कालरात्रि धारे कराली, बहिन मात की अति विकराली ॥


दश विद्या नव दुर्गा आदि, ध्याते तुम्हें परमार्थ वादि ॥


अष्ट सिद्धि गणपति जी दाता, बाल रूप शरणागत माता ॥


माँ भंडारे के रखवारी, प्रथम पूजने की अधिकारी ॥


जग की एक भ्रमण की कारण, शिव शक्ति हो दुष्ट विदारण ॥


भूरा देव लौकडा दूजा, जिसकी होती पहली पूजा ॥


बली बजरंगी तेरा चेरा, चले संग यश गाता तेरा ॥


पांच कोस की खोल तुम्हारी, तेरी लीला अति विस्तारी ॥


रक्त दन्तिका तुम्हीं बनी हो, रक्त पान कर असुर हनी हो ॥


रक्तबीज का नाश किया था, छिन्न मस्तिका रूप लिया था ॥


सिद्ध योगिनी सहस्या राजे, सात कुण्ड में आप विराजे ॥


रूप मराल का तुमने धारा, भोजन दे दे जन जन तारा ॥


शोक पात से मुनि जन तारे, शोक पात जन दुःख निवारे ॥


भद्र काली कमलेश्वर आई, कान्त शिवा भगतन सुखदाई ॥


भोग भण्डार हलवा पूरी, ध्वजा नारियल तिलक सिंदूरी ॥


लाल चुनरी लगती प्यारी, ये ही भेंट ले दुःख निवारी ॥


अंधे को तुम नयन दिखाती, कोढ़ी काया सफल बनाती ॥


बाँझन के घर बाल खिलाती, निर्धन को धन खूब दिलाती ॥


सुख दे दे भगत को तारे, साधु सज्जन काज संवारे ॥


भूमण्डल से जोत प्रकाशी, शाकम्भरी माँ दुःख की नाशी ॥


मधुर मधुर मुस्कान तुम्हारी, जन्म जन्म पहचान हमारी ॥


चरण कमल तेरे बलिहारी, जै जै जै जग जननी तुम्हारी ॥


कांता चालीसा अति सुखकारी, संकट दुःख दुविधा टारी ॥


जो कोई जन चालीसा गावे, मात कृपा अति सुख पावे ॥


कान्ता प्रसाद जगाधरी वासी, भाव शाकम्भरी तत्त्व प्रकाशी ॥


बार बार कहें कर जोरी, विनिती सुन शाकम्भरी मोरी ॥


मैं सेवक हूँ दास तुम्हारा, जननी करना भव निस्तारा ॥


यह सौ बार पाठ करे कोई, मातु कृपा अधिकारी सोई ॥


संकट कष्ट को मात निवारे, शोक मोह शत्रुन संहारे ॥


निर्धन धन सुख संपत्ति पावे, श्रद्धा भक्ति से चालीसा गावे ॥


नौ रात्रों तक दीप जगावे, सपरिवार मगन हो गावे ॥


प्रेम से पाठ करे मन लाई, कान्त शाकम्भरी अति सुखदाई ॥


॥ दोहा ॥


दुर्गासुर संहारणी करणि जग के काज, शाकम्भरी जननि शिवे रखना मेरी लाज ॥


युग युग तक व्रत तेरा करे भक्त उद्धार, वो ही तेरा लाड़ला आवे तेरे द्वार ॥

 

श्री शाकंभरी चालीसा – Shri shakambhari chalisa