जब महाभारत का युद्ध प्रारम्भ हो रहा था, इधर से पांड़वो की सेना तैयार थी उधर से कौरवों की सेना तैयार थी। दोनों सेनाएं आपस में टकराने के लिए बिल्कुल तैयार थी तो उस समय युद्ध क्षेत्र बीच में एक चिड़िया के अंडे पड़े हुए थे। उस चिड़िया ने अभी-अभी वो अंडे दिए थे और उसकी आँखों में आँसू थे, वो रो रही थी कि दोनों तरफ से सेनाएं आपस मे टकराएंगी और मेरे ये बच्चे तो संसार में आने से पहले ही खत्म हो जाएंगे। उस चिडिया ने इस दु:ख की घडी मे भगवान से विनती की “हे प्रभु ! जिसकी कोई नहीं सुनता उसकी तो आप सुनते हो।”
उस छोटी सी चिड़िया ने भगवान से प्रार्थना की प्रभु अब तो आप ही कुछ कर सकते है और उसी समय युद्ध प्रारम्भ हुआ। दोनों सेनाएं परस्पर टकराई, महा भयंकर युद्ध हुआ। बडे-बडे महारथी युद्ध मे मारे गये। चारों तरफ सैनिकों के लाशों के ढ़ेर थे। महाभारत युद्ध के उपरांत अर्जुन के रथ को लेकर श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र की भूमि से निकलकर जा रहे है, पांडव युद्ध जीत चुके है।
भगवान अर्जुन के रथ को लेकर जा रहे है तो नीचे भूमि पर एक रथ का घंटा पड़ा हुआ है। भगवान के हाथ में घोड़ो को हांकने वाला चाबुक है। भगवान ने उस पड़े हुए घंटे पे जोर से चाबुक को मारा तो वो घंटा पलट गया और जैसे ही वो घंटा पलटा तो उसके अंदर से चिड़िया के नन्हे बच्चे फुदकते हुए बाहर निकले और उड़कर वहाँ से चले गए। ये देखकर अर्जुन को बड़ा आश्चर्य हुआ और अर्जुन भगवान से बोले “केशव ! ये मैं क्या देख रहा हूँ ? इतना भीषण युद्ध जो ना पहले कभी हुआ और ना आगे शायद होगा। ऐसा ये भीषण महाभारत युद्ध जिसमे भीष्म पितामह, कर्ण और गुरु द्रौण, जैसे योद्धा नहीं बचे। जिस युद्ध में दुर्योधन जैसे बलशाली नहीं बचे। ऐसे भीषण संग्राम में इन चिड़िया के बच्चों की रक्षा किसने की ?”
भगवान मुस्कुराने लगे और बोले “अर्जुन ! अभी भी नहीं समझा ? अरे पगले जिसने तुझे बचाया है, उसने ही तो इनको बचाया है