जैन धर्म सहित्यिक रूप से बहुत धनी था। अनेक धार्मिक ग्रंथ लिखे गए हैं। ये ग्रंथ संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में लिखे गए थे । केवल ज्ञान, मनपर्यव ज्ञानी, अवधि ज्ञानी, चतुर्दशपूर्व के धारक तथा दशपूर्व के धारक मुनियों को आगम कहा जाता था तथा इनके द्वारा दिए गए उपदेशों को भी आगम नाम से संकलित किया गया। दिगम्बर जैनों द्वारा समस्त 45 आगम ग्रंथों को चार भाग में विभाजित किया गया है – प्रथमानुयोग, करनानुयोग, चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग।
दिगम्बरों का मानना है कि आगम ग्रंथ समय के साथ-साथ अलग-अलग होते गए हैं। श्वेतांबर जैनों का प्रमुख ग्रंथ कल्पसूत्र माना जाता है। साथ ही आचार्य उमास्वामी द्वारा रचित ‘तत्वार्थ सूत्र’ एक ऐसा ग्रंथ है जो सभी जैनों द्वारा स्वीकृत है। इसमें 10 अध्याय तथा 350 सूत्र हैं। दिगम्बरों के प्राचीन साहित्य की भाषा शौरसेनी थी, जो एक प्रकार की अपभ्रंश ही थी।आदिकालीन साहित्य में सबसे प्रमाणिक रूप में जैन ग्रंथ ही प्राप्त होते हैं। जैन कवियों द्वारा अनेक प्रकार के ग्रंथ रचे गए।उन्होंने पुराण काव्य, चरित काव्य, कथा काव्य, रास काव्य आदि विविध प्रकार के ग्रंथ रचे। स्वयंभू, पुष्प दंत, हेमचंद्र, सोमप्रभ सूरी, जिनधर्म सूरी आदि मुख्य जैन कवि हैं। स्वयंभू को हिन्दी का प्रथम कवि भी स्वीकार किया जाता है जिनकी प्रमुख रचना ‘पउमचरिउ’ है जिसमें रामकथा का वर्णन है। अधिकतर जैन ग्रंथों का आधार हिन्दू कथाएं ही बनी।