सावन मास में इस स्तोत्र के नियमित पाठ से दूर होंगे पितृ और कालसर्प दोष – Regular recitation of this stotra in the month of sawan will remove pitra and kaalsarp dosh

सनातन धर्म में सावन के महीने का विशेष महत्व होता है। इस महीने को देवों के देव महादेव को समर्पित किया जाता है। भगवान शिव का नवग्रह पर आधिपत्य माना जाता है, इसलिए जिस इंसान की कुंडली में कालसर्प और पितृ दोष है वह लोग अगर सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने के साथ ही उनके इस स्तोत्र का पाठ करेंगे, तो इससे कालसर्प दोष और पितृ दोष से मुक्ति पाई जा सकती है। जानिए इस स्तोत्र के बारे में जिसे पढ़कर कालसर्प दोष और पितृ दोष के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

* कालसर्प दोष और पितृ दोष के कारण: 

ज्योतिषों के अनुसार, जिस व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष बनता है उसे जीवन भर संघर्ष करना पड़ता है। बिजनेस, नौकरी या करियर में असफलताएं हाथ लगती हैं और भौतिक सुख-सुविधाओं से भी उन्हें जूझना पड़ता है। दरअसल, कालसर्प दोष राहु और केतु से बनता है। यह 12 प्रकार का होता है। वहीं, पितृ दोष अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में पंचम और नवम भाव में राहु या केतु के साथ है, तो ऐसे व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष होता है। इस दोष के प्रभाव से संतान सुख में बाधा आ सकती है या संतान है तो उसे समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

* सावन में करें इस स्तोत्र का पाठ: 

॥ नाग स्तोत्रम् ॥

ब्रह्म लोके च ये सर्पाःशेषनागाः पुरोगमाः।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥

विष्णु लोके च ये सर्पाःवासुकि प्रमुखाश्चये।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥

रुद्र लोके च ये सर्पाःतक्षकः प्रमुखास्तथा।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥

खाण्डवस्य तथा दाहेस्वर्गन्च ये च समाश्रिताः।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥

सर्प सत्रे च ये सर्पाःअस्थिकेनाभि रक्षिताः।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥

प्रलये चैव ये सर्पाःकार्कोट प्रमुखाश्चये।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥

धर्म लोके च ये सर्पाःवैतरण्यां समाश्रिताः।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥

ये सर्पाः पर्वत येषुधारि सन्धिषु संस्थिताः।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥

ग्रामे वा यदि वारण्येये सर्पाः प्रचरन्ति च।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥

पृथिव्याम् चैव ये सर्पाःये सर्पाः बिल संस्थिताः।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥

रसातले च ये सर्पाःअनन्तादि महाबलाः।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है।)

 

सावन मास में इस स्तोत्र के नियमित पाठ से दूर होंगे पितृ और कालसर्प दोष –

Regular recitation of this stotra in the month of sawan will remove pitra and kaalsarp dosh

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