धार्मिक सरलता

● यह कहना अनुचित नहीं कि भारत में बौद्धधर्म का उदय एक धार्मिक क्रांति के फलस्वरूप था वह धार्मिक क्रांति वैदिक धर्म के कर्मकाण्डों और पुरोहितों के प्रभाव के विरुद्ध हुई थी। जिस समय बौद्धधर्म का अभ्युदय हुआ उस समय की सामाजिक तथा धार्मिक स्थितियाँ उसके अनुकूल थीं वैदिक धर्म काफी पुराना था उसमें पहले जैसी सरलता, स्वाभाविकता और पवित्रता नहीं रह गयी थी। प्रारम्भ में यज्ञादि अनुष्ठानों में इतना आडम्बर नहीं था लेकिन बाद में धार्मिक कर्मकांड को ही साध्य समझा जाने लगा। लोग सदाचार को भूलकर कर्मकांड की बीमारियों में दिमाग खपाने लगे। यज्ञों तथा बलिदानों में ऐसी जटिलता आ गयी थी और उन पर इतना अधिक धन व्यय करना पड़ता था कि ये साधारण व्यक्ति की पहुँच के बाहर की चीज हो गये थे। अतएव, जब बुद्ध ने वैदिक कर्मकांड का विरोध करते हुए ब्राह्मणों की श्रेष्ठता को चुनोती देना शुरू किया तो अनेक लोग उनके उपदेशों से प्रभावित हो गये और उनका शिष्य बनना स्वीकार किया बुद्ध के उपदेश सरत तथा सादा थे। उनका आधार सदाचार था न कि पूजा पाठा ऐसी दशा में जनता का उनकी ओर आकृष्ट होना स्वाभाविक था। इस बात में कोई सन्देह नहीं कि महात्मा बुद्ध ने जीवन की जो व्यवस्था की उसमें किसी प्रकार की दार्शनिक जटिलता अथवा दुर्बोधता का अभाव था। बुद्ध ने सरल और स्पष्ट शब्दों में समझाया कि मानव जीवन दुखमय है।

बुद्ध का व्यक्तित्व

● बौद्धधर्म के प्रचार में महालय बुद्ध के चुम्बकीय व्यक्तित्व का बहुत योग था। उनका व्यक्तित्व बड़ा प्रभावशाली, तेजस्वी और महान् था। उनका चरित्र इतना सरल और पवित्र था कि जो भी उनके सम्पर्क में आया उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। वास्तव में उन्होंने अपने सिद्धांतों को अपने जीवन में पूर्णरूपेण चरितार्थ करके दूसरों पर अपने विचार की श्रेष्ठता की धाक जमायी। कुछ स्वार्थी लोगों ने उन्हें बदनाम करने का यत्न किया किन्तु उनके चरित्र की उच्चता के सामने उनके सारे यत्न विफल रहे। मनुष्य को चाहिए कि वह क्रोध पर प्रेम से, बुराई पर भलाई से, लोभ पर उदारता से और झूठ पर सच्चाई से विजय प्राप्त करें। अपने इस उपदेश को बुद्ध ने स्वयं अपने जीवन में पूर्णरूपेण निवाहा तात्पर्य यह है कि बुद्ध के धर्म की लोकप्रियता के और कुछ भी कारण रहे हो किन्तु उनके चरित्र ने अपने आप जनता का दिल जीत लिया। बुद्ध के अद्भुत अलोकिक और महान् व्यक्तित्व ने बौद्धधर्म की उन्नति में महत्वपूर्ण भाग लिया, जिससे उसका उत्थान अति शीघ्र हुआ। बुद्ध स्वयं एक राजकुमार थे किन्तु उन्होंने राजसुखों को छोड़कर लोककल्याण के लिए सन्यासव्रत ग्रहण कर लिया था। इस कारण सभी बुद्ध के व्यक्तित्व से प्रभावित थे वो गालियाँ सुनने पर भी मानसिक सन्तुलन बनाये रखते थे। उनकी दृष्टि में मनुष्य मनुष्य में कोई भेद नहीं था बौद्ध धर्म के प्रचार में इस बात से बड़ी सहायता

प्रचार शैली की रोचकता

● बुद्ध ने जिस प्रचार शेली को अपनाया वह नितांत सरल, सुबोध और लोकरुचि के अनुकूल थी। उन्होंने लोककथाओं, लोकोक्तियों और मुहावरों को अपनी शिक्षाओं में प्रचुरता से प्रयोग किया। अपने सिद्धांतों को समझाने के लिए वे जिन उदाहरणों और उपमाओं का प्रयोग करते थे, उनका सीधा सम्बन्ध मनुष्य के दैनिक ‘जीवन से होता था। वे अपने उपदेशों में हास्य और व्यंग्य का भी उचित मात्रा में पुट दिया करते थे जिससे उनमें रोचकता आ जाती थी। वे गूढ़ तत्वज्ञानी होने के साथ व्यावहारिक जीवन में भी निपुण थे। उनके द्वारा दिये गये दृष्टांत उनकी व्यावहारिक निपुणता का परिचय देते हैं। बुद्ध ने अपने शिष्यों को भी इसी नीति का अनुसरण करने की शिक्षा दी, जिससे बौद्धधर्म का प्रचार कार्य सरल हो गया।

तर्कसम्मत धर्म

● बोद्ध धर्म के उत्थान का प्रमुख कारण उसका तर्कसम्मत होना था। बुद्ध ने अन्धविश्वास का परित्याग करके तर्क को अपनाया। उनकी तर्कपूर्ण धार्मिक विवेचना की सरलता हिन्दू धर्म के बड़े बड़े दिग्गज महारथियों तक को परास्त कर निरुत्तर कर दिया करती थी। बड़े-बड़े प्रसिद्ध विद्वान और महाकश्यप सारिपुत्र जैसे हिन्दू धर्म के महान आचार्य तक पराजित होकर उनके शिष्य बन गये थे।

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