महात्मा बुद्ध ने प्राचीन काल में बौद्ध धर्म प्रचार मौखिक रूप से ही किया था इसके पश्चात उनके शिष्य ने भी उनके धर्म का प्रचार किया था बाद में उनके शिष्यों ने महात्मा बुध के धर्म प्रचार के मुख्य बातों को लिखित रूप में संकलित किया महात्मा बुद्ध के उपदेशों के संकलन को त्रिपिटक के नाम से जाना जाता है यह तीन प्रकार के होते हैं इन त्रिपिटक ओम त्रिपिटक के द्वारा बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का पता चलता है.
बौद्ध धर्म के सिद्धांत :-
1. चार आर्य सत्य:- महा महात्मा बुद्ध ने अपने प्रथम उपदेश में अपनी शिक्षाओं के सर को प्रस्तुत किया. इन्हें चार आर्य सत्य कहा जाता था क्योंकि यह सिद्धांत चार सत्यम पर आधारित है. यह निम्न प्रकार से है:-
* दुख- महात्मा बुद्ध के अनुसार जीवन ही दुखों से भरा है. उनका कहना है क्षणिक सुख को सुख मानना और दूरदर्शिता है. मानव जीवन दुखों से परिपूर्ण है महात्मा बुध के अनुसार जन्म भी दुख है, प्रिय वियोग भी दुख है, मरण भी दुख है, अप्रिय मिलन भी दुख है, इच्छित वस्तु की अप्राप्ति भी दुख है. महात्मा बुध के अनुसार सांसारिक सुख वास्तविक सुख है क्योंकि इसके नष्ट होने की चिंता हमेशा लगी रहती है.
* दुख के कारण:- दुख के बहुत से कारण हैं. महात्मा बुद्ध के अनुसार दुख का मूल कारण है. अगर किसी की इच्छा पूरी नहीं होती है होता है या इच्छा के रास्ते में किसी की रुकावट आती है तो दुख आता है.
* दुख निरोध:- महात्मा बुध के अनुसार दुखों से मुक्ति पाने के लिए दुख उत्पन्न करने वाले कारणों का समाधान करना अनिवार्य है. इच्छा पर विजय प्राप्त करने के बाद दुख को दूर किया जा सकता है. दुख निरोध को है महात्मा बुद्ध ने दुख निवारण माना है.
* दुख निरोध मार्ग:- महात्मा बुद्ध के अनुसार योगिक क्रियाएं या तपस्या जो शारीरिक यातनाएं ना तो तृष्णा ओं का अंत कर सकते हैं ना पुनर्जन्म से मुक्ति दिला सकते हैं. महात्मा बुद्ध ने बताया कि तृष्णा और वासनाओं का विनाश तथा दुखों का निरोध अष्टांगिक मार्ग के अनुसरण से ही हो सकता है.
2. अष्टांगिक मार्ग:- दुखों पर विजय प्राप्त करने के लिए अथवा उनसे मुक्ति पाने के लिए महात्मा बुद्ध ने बहुत से रास्ते बताएं. महात्मा बुद्ध के बताए मार्गों को अष्टांगिक मार्ग कहते हैं. अष्टांगिक मार्ग आठ प्रकार के होते हैं:-
* सम्यक् दृष्टि – महात्मा बुद्ध का कहना है चार आर्य सत्य को समझते हुए अष्टांग मार्ग और दृष्टि रखना, अर्थात वित्तीय दृष्टि को त्याग कर यथार्थ स्वरूप पर ध्यान देना.
* सम्यक् संकल्प – दूसरों को हानि पहुंचाते हुए धन के संग्रह नहीं करने की निश्चय करना. सुख सुविधा विलासिता आदि में आदि से बचने का संकल्प करना.
* सम्यक् वाक् – अपनी बोली पर नियंत्रण रखना झूठ बोलना, निंदा अपशब्द आदि के प्रयोग से बचना.
* सम्यक् कर्मान्त – ऐसे कर्म से बचना चाहिए जिससे समाज अथवा किसी व्यक्ति की हानि हो, बल्कि ऐसे कार्य करना चाहिए जिससे दूसरों को लाभ मिले.
* सम्यक् आजीविका – अपनी आजीविका के लिए वैसे चीजों को बेचना, जिससे दूसरों का नुकसान हो जैसे कि शराब बेचना, जानवर काटना आदि से बचना चाहिए, बल्कि अच्छे साधनों के द्वारा अपनी जीविकोपार्जन करना चाहिए.
* सम्यक् व्यायाम – अपने मस्तिष्क को मेरे विचारों में से दूर रखना चाहिए और अच्छे विचारों से भरना चाहिए.
* सम्यक् स्मृति – अपने ज्ञान को हमेशा याद रखना चाहिए तथा दुर्गुण भाव को अपने मन में कभी ना आने देना चाहिए.
* सम्यक् समाधि – जो उपरोक्त सात नियमों का पालन करके खुद को परिपूर्ण कर लेता है. उसे अपनी चित्त की एकाग्रता के लिए समाधि ले लेना चाहिए.
3. दस शील :- इसके अलावा महात्मा बुद्ध ने प्रतिदिन के जीवन में व्यवहार में लाने के लिए दस बिंदुओं पर बड़ा बल दिया है. इसे दस शील के नाम से जाना जाता है. ये निम्नलिखित हैं:-
* सत्य बोलना
* अहिंसा का पालन करना
* ब्रह्मचर्य के अनुसार जीवन का पालन करना
* चोरी से बचना
* धन संग्रह की प्रवृत्ति से बचना
* सुगंधित पदार्थों का त्याग करना
* कोमल शैया का त्याग करना
* नृत्य, गायन, मादक, कामोत्तेजक वस्तुओं का त्याग करना
* असमय भोजन का त्याग करना
* बुरे विचारों का त्याग करना
महात्मा बुद्ध के अनुसार इस संसार में सभी निश्चित है. यहां तक की आत्मा का भी कोई अस्तित्व नहीं है. जीवन का आगमन आत्मा का पुनर्जन्म अथवा आवागमन नहीं बल्कि मनुष्य की एक क्रिया और उसकी प्रतिक्रिया का परिणाम है. महात्मा बुद्ध को ना ईश्वर में विश्वास था और ना आत्मा में. उनको पूजा, बली, यज्ञ आदि में भी विश्वास नहीं था. उसने लोगों को सत्य ज्ञान और कर्म ज्ञान के अनुसार कर्म को नष्ट करके निर्वाण प्राप्ति का मार्ग बताया था.