जानिए साल में दो बार क्यों मनाई जाती है ईद? Know why eid is celebrated twice a year

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जानिए साल में दो बार क्यों मनाई जाती है ईद? Know why eid is celebrated twice a year

ईद के चांद की मिसाल देते आपने लोगों को कई बार सुना होगा. दरअसल ईद का चांद साल में दो बार ही नजर आता है. एक ईद-उल-फितर (Eid Ul Fitr) जिसे हम मीठी ईद (Meethi Eid) भी कहते हैं और दूसरा ईद-उल-जुहा, जिसे बकरीद  के नाम से जाना जाता है. ईद का चांद दिखने के बाद ही अगले दिन इस त्‍योहार को मनाया जाता है. इसका कारण है कि उर्दू कैलेंडर हिजरी संवत चांद पर आधारित है. हिजरी संवत का कोई भी महीना नया चांद देखकर ही शुरू होता है.

रमजान के महीने की आखिरी रात का चांद देखकर शव्वाल के पहले दिन मीठी ईद मनाई जाती है. वहीं रमजान के करीब 70 दिनों बाद बकरीद का त्‍योहार मनाया जाता है. इसे ईद-उल-जुहा और ईद-उल-अजहा भी कहा जाता है. आज मुस्लिम समुदाय के बीच ईद-उल-फितर मनाई जा रही है. लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि आखिर ईद का त्‍योहार साल में दो बार क्‍यों मनाया जाता है? 

ईद-उल-फितर या मीठी ईद पहली बार 624 ईस्वी में मनाई गई थी. कहा जाता है कि इस दिन पैगम्बर हजरत मोहम्मद ने बद्र के युद्ध में विजय हासिल की थी. पैगम्‍बर साहब की जीत की खुशी जाहिर करते हुए लोगों ने उस समय मिठाइयां बांटीं थीं. कई तरह के पकवान बनाकर जश्‍न मनाया था. तब से हर साल बकरीद से पहले मीठी ईद मनाई जाने लगी.

कुरआन के अनुसार मीठी ईद को अल्लाह की तरफ से मिलने वाले इनाम का दिन माना जाता है. इस्लामी कैलेंडर के नौवें महीने में पूरे माह रोजे रखे जाते हैं और जब अहले ईमान रमजान के पवित्र महीने के एहतेरामों से फारिग हो जाते हैं और रोजों-नमाजों तथा उसके तमाम कामों को पूरा कर लेते हैं तो अल्लाह एक दिन अपने इबादत करने वाले बंदों को बख्शीश व इनाम से नवाजता है. बख्शीश व इनाम के दिन को ईद-उल-फितर का नाम दिया गया है.

वहीं अगर ईद-उल-अजहा की बात करें तो इस दिन का इतिहास हजरत इब्राहिम से जुड़ी एक घटना से है. ये दिन कुर्बानी का दिन माना जाता है. कहा जाता है कि अल्लाह ने एक दिन हजरत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी. हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे, लिहाजा उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया. हजरत इब्राहिम जैसे ही अपने बेटे की कुर्बानी देने वाले थे कि उसी वक्त अल्लाह ने अपने दूत को भेजकर बेटे को एक बकरे से बदल दिया. तभी से इस्‍लाम में बकरीद मनाने की शुरुआत हुई.

 

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