जानिए मान्यता के अनुसार मासिक दुर्गाष्टमी पर कौन सा स्तोत्र पढ़ने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। Know which mantra recited on monthly durga ashtami will fulfill all the wishes as per belief

सनातन धर्म में मां दुर्गा को शक्ति का अवतार कहा गया है। हिंदू पंचांग में हर माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मां दुर्गा के लिए समर्पित दुर्गाष्टमी का व्रत किया जाता है। इस दिन मां दुर्गा की विधिवत पूजा के साथ-साथ जातक व्रत भी करता है और सच्चे मन से मां की आराधना करता है। मान्यता है कि मासिक दुर्गाष्टमी के दिन व्रत और मां दु्र्गा की पूजा करने से परिवार में शांति और सुख-समृद्धि का आगमन होता है। कहा जाता है कि मासिक दुर्गाष्टमी की पूजा के दौरान सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से मां बेहद प्रसन्न होती हैं और जातक को आशीर्वाद देती हैं। चलिए जानते हैं कि ये स्तोत्र क्या है और इसका जाप कैसे किया जाता है।

* मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत कब है:

पंचांग के अनुसार, इस माह दुर्गाष्टमी का व्रत 14 जुलाई को रखा जाएगा। इस दिन सुबह के समय स्नान आदि करने के बाद मां का मंदिर साफ करके एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित करें। इसके पश्चात हाथ में गंगाजल लेकर व्रत का संकल्प लें। अब मां को लाल फूल अर्पित करें। इसके पश्चात लाल सिंदूर, अक्षत, मौली, रोली, लौंग, इलाइची, इत्र, पान और सुपारी अर्पित करें। इसके बाद मिठाई और फल अर्पित करें। अब धूप, दीप जलाकर मां की आरती करें। इसके पश्चात दुर्गा चालीसा का पाठ करें। दुर्गा चालीसा के बाद जातक को मां की प्रतिमा के सामने सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

* सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र इस प्रकार है – शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥१॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥

* अथ मंत्र इस प्रकार है – अथ मन्त्रः॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।

* सबसे अंत में इति मंत्र का जाप किया जाता है जो इस प्रकार है – इति मन्त्रः॥

नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥२॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥३॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥४॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥५॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥६॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
॥ॐ तत्सत्॥

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है।)

 

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