शिव भक्त भगवान शंकर को अत्यंत प्रिय रुद्राक्ष जरूर धारण करते है। मान्यता है कि भगवान शिव की शक्तियां रुद्राक्ष में समाहित होती हैं। रुद्राक्ष का संबंध भगवान शंकर से माना जाता है। आइए जानते हैं रुद्राक्ष की उत्पत्ति और इसके नामकरण की कथा कैसे पड़ा रुद्राक्ष नाम।

 

* क्या है रुद्राक्ष का अर्थ: 

रुद्राक्ष में दो शब्द हैं रुद्र और अक्ष। इसमें रुद्र भगवान शंकर का नाम है और और अक्ष का अर्थ है नेत्र। रुद्राक्ष का अर्थ भगवान शंकर के नेत्र।

* रुद्राक्ष की उत्पत्ति कथा: 

रुद्राक्ष के उत्पन्न होने की कहानी भगवान शिव से जुड़ी है। मान्यता है कि भगवान शंकर के नेत्रों से निकलने वाले आंसुओं से रुद्राक्ष उत्पन्न हुआ है, इसीलिए इसका नाम रुद्राक्ष पड़ा है। पौरणिक कथा के अनुसार त्रिपुरासुर नामक राक्षस के पास कई दैवीय शक्ति थी जिसका उसे बहुत घंमड था। वह ऋषि मुनियों से लेकर देवताओं को तंग करता था। परेशान होकर सभी देव ब्रह्मा, विष्णु के साथ भगवान शिव के पास पहुंचे, और उनसे त्रिपुरासुर से रक्षा करने की प्रार्थना करने लगे। यह सुनकर भगवान शंकर ध्यान में चले गए। जब उन्होंने अपनी आंखें खोली तो उनके नेत्रों में आंसू थे, ये आंसू जहां-जहां गिरे वहां रुद्राक्ष के पेड़ उग आए।

* एक तरह का फल: 

रुद्राक्ष एक तरह का सूखा फल होता है। इसे इसमें पाए जाने वाले मुख के अनुसार अलग-अलग श्रेणियों में रखा जाता है। जाप के लिए 108 मुखी रुद्राक्ष का उपयोग कया जाता है।

* तीनों देव की कृपा: 

रुद्राक्ष धारण करने वालों को ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देव की कृपा प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रुद्राक्ष को शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा, अमावस्या या एकादशी की तिथि को धारण करना चाहिए।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है।)

 

जानिए रुद्राक्ष का रुद्र से क्या संबंध है, इसे यह नाम क्यों मिला और इससे जुड़ी कहानी क्या है।

Know the relation of rudraksha with rudra, why it got this name and the story related to it

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