इस व्रत कथा को पढ़े बिना जन्माष्टमी का व्रत अधूरा माना जाता है, जानिए इस कथा के बारे में – Janmashtami fast is considered incomplete without reading this fast story, know about this story

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इस व्रत कथा को पढ़े बिना जन्माष्टमी का व्रत अधूरा माना जाता है, जानिए इस कथा के बारे में - Janmashtami fast is considered incomplete without reading this fast story, know about this story

श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर कान्हा ने जन्म लिया था। यह तिथि इस साल 26 अगस्त के दिन पड़ रही है। आज अष्टमी तिथि देररात 2 बजकर 19 मिनट तक रहने वाली है। पूजा का शुभ मुहूर्त रात 12 बजकर 44 मिनट तक है। इस शुभ मुहूर्त में बाल गोपाल की पूजा संपन्न की जा सकती है। माना जाता है कि जन्माष्टमी के मौके पर कंस वध की कथा सुनना बेहद शुभ होता है। कहते हैं इस कथा के बिना जन्माष्टमी की पूजा अधूरी मानी जाती है।

* जन्माष्टमी व्रत की कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार, माना जाता है कि द्वापर युग में मथुरा में कंस नाम का एक राजा हुआ करता था। कंस अपनी बहन देवकी से अत्यंत प्रेम करता था और उसके लिए कुछ भी कर सकता था। देवकी का विवाह बेहद धूमधाम से वासुदेव से कराया गया था। परंतु एक दिन आकाश में यह भविष्यवाणी हुई कि उसकी मृत्यु का कारण उसकी ही बहन की संतान होगी। भविष्यवाणी में कहा गया कि, हे कंस तू अपनी बहन को ससुरार छोड़ने जा रहा है परंतु उसकी गर्भ से पैदा होने वाली आठवीं संतान ही तेरी मृत्यु का कारण बनेगी।

इस भविष्यवाणी को सुनकर कंस दंग रह गया। कंस एक अत्याचारी शासक था जिससे ब्रजवासी परेशान थे। कंस ने अपनी बहन के साथ सदा प्रेम से व्यवहार किया था मगर यह भविष्यवाणी सुनकर सबकुछ बदल गया।

कंस ने अपनी बहन देवकी और उसके पति वासुदेव को कारागार में डाल दिया। देवकी ने अपने भाई से कहा कि उसकी संतान कभी अपने मामा के साथ ऐसा नहीं करेगी लेकिन कंस ने उसकी एक ना सुनी।

इसके बाद कारागार में ही देवकी और वासुदेव की सात संतानें हुईं जिन्हे कंस ने मार दिया। सातवीं संतान को योगमाया ने देवकी के गर्भ से संरक्षित कर माता रोहिणी के गर्भ मं डाल दिया और आठवीं संतान को देवकी ने जन्म दिया। यही संतान श्रीकृष्ण थी। आठवीं संतान को कंस लेकर जाता उससे पहले ही चमत्कार होने लगा। कारागार के द्वार अपनेआप खुलने लगे, प्रकाश से कारागार जगमगाने लगा और सभी रास्ते खुद ही खुलने लगे। इस संतान को वासुदेव के यहां छोड़ दिया और उनकी कन्या को अपने साथ ले आए

नंद जी के यहीं श्रीकृष्ण को पाला गया और यशोदा मैया ने अपना प्रेम दिया। आगे चलकर श्रीकृष्ण ने ही अपने मामा कंस का वध किया और ब्रजवासियों को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है।)

 

इस व्रत कथा को पढ़े बिना जन्माष्टमी का व्रत अधूरा माना जाता है, जानिए इस कथा के बारे में –

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