वैष्णो देवी के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि जम्मू कश्मीर में गांव हंसाली (वर्तमान कटरा) में एक श्री धर नाम का पंडित रहता था। उसने एक बार नवरात्रियों में नौ कन्याओं को भोजन के लिए बुलाया और माता वैष्णो भी बल रूप रखकर उन कन्याओं के साथ सामिल हो गयी थी। भोजन करने के बाद सभी कन्याएँ चली गयी लेकिन माता वैष्णो वहीं बैठी रही और उन्होने श्री धर से एक भोज (भंडारा) का आयोजन करने का आदेश दिया, और आस पास के सभी गाँव वालों को बुलाने का आदेश दिया। जब भंडारा शुरू हुआ तो माता ने अपने चमत्कारी बर्तन से भोजन परोसना शुरू किया भोजन परोसते हुये माता जैसे ही गोरखनाथ के एक शिष्य भैरों नाथ के पास पहुंची तो वह मांस और शराब की मांग करने लगा। लेकिन माता वैष्णो देवी ने उनसे कहा कि उन्हें केवल शाकाहारी भोजन मिलेगा, क्योंकि यह एक ब्राह्मण की दावत है।
यह देखकर भैरो नाथ ने माता को पकड़ने कि कोशिस की तो माता त्रिकुटा पर्वत की ओर भाग गयी। भैरों नाथ भी माता का पीछा करने लगा। उससे बचने के लिए माता वैष्णो एक गुफा में चली गयी और नौ महीने तक उसी गुफा में तपस्या की। भैरो नाथ भी माता का पीछा करते हुये गुफा तक पहुँच गया। वहाँ एक साधु ने भैरो नाथ से कहा जिसे तू एक कन्या समझ रहा है वह आदिशक्ति जगदंबा है तू उसका पीछा करना छोड़ दे। भैरो नाथ ने साधू की बात नहीं मानी और माता गुफा के दूसरी ओर से रास्ता बनाकर बाहर निकल गयी। यह गुफा आज भी अर्ध कुमारी और आदि कुमारी के नामों से जानी जाती है। जब माता बाहर निकली तो उन्होने देवी का रूप धारण किया था। और उन्होने भैरो नाथ से वापस जाने को कहा लेकिन भैरो नाथ नहीं माना तो माता ने महा काली का रूप धारण कर अपने चक्र से भैरो नाथ का सिर धड़ से अलग कर दिया था।
भैरो नाथ का सिर कट कर उस स्थान से 8 किलोमीटर दूर त्रिकुट पर्वत की घाटी में जा गिरा। जिसे बाद में भैरो घाटी के नाम से जाना जाने लगा। जिस स्थान पर माता ने भैरो नाथ का वध किया उस स्थान पर माता के पवित्र मंदिर स्थापित हुआ। इसी स्थान पर माँ काली दाहिने, माँ सरस्वती मध्य और माँ लक्ष्मी बाएँ स्थान पर पवित्र पिंड के रूप में विराजमान हैं। माता के इन तीनों स्वरूपों को ही माता वैष्णो कहा जाता है।अपना वध होने के बाद भैरों नाथ ने पश्चाताप किया और माता से उसका उद्धार करने को कहा माता वैष्णो देवी ने उसे माफ किया और मोक्ष प्रदान किया। उसे मोक्ष देते समय माता ने एक शर्त रखी कि उनके दर्शन करने के बाद जब तक तीर्थयात्री भैरो नाथ के दर्शन नहीं करेंगे तब तक उनकी तीर्थयात्रा फलदायी नहीं होगी। बाद में वैष्णो देवी 3 छोटी चट्टानों (पिंडिका) के रुप में प्रकट हुईं और आज तक वहीं रहती हैं। बाद में श्री धर ने गुफा में जाकर माता की इन पिंडियों की पूजा अर्चना करना शुरू किया और उनके वंशज आज भी माता वैष्णो देवी की पुजा करते हैं।