भारत के मध्य प्रदेश के भोपाल में स्थित ताज-उल-मस्जिद देश की सबसे बड़ी और सबसे प्रभावशाली मस्जिदों में से एक है। इसका नाम “मस्जिदों का ताज” या “मस्जिदों के बीच का ताज” है।
ताज-उल-मस्जिद का निर्माण 19वीं शताब्दी के अंत में भोपाल की सुल्तान शाहजहाँ बेगम द्वारा शुरू किया गया था। वह 1868 से 1901 तक भोपाल की शासक रहीं और शहर को सुंदर बनाने के अपने प्रयासों के तहत उन्होंने मस्जिद का निर्माण कराया।
मस्जिद का निर्माण 1880 में शुरू हुआ लेकिन वित्तीय बाधाओं और सुल्तान शाहजहाँ बेगम की मृत्यु के कारण रुक गया। इसे बाद में 1971 में उनकी बेटी सुल्तान कैखुसरो जहां बेगम ने फिर से शुरू किया।
ताज-उल-मस्जिद एक वास्तुशिल्प चमत्कार है, जिसमें भव्य गुंबद, ऊंची मीनारें और जटिल डिजाइन वाले अग्रभाग हैं। मस्जिद का गुलाबी मुखौटा, संगमरमर का फर्श और उत्कृष्ट सुलेख इसकी सुंदरता और भव्यता को बढ़ाते हैं।
भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक होने के बावजूद, ताज-उल-मस्जिद आज भी अधूरी है। मूल योजना में अतिरिक्त संरचनाएं और अलंकरण शामिल थे जिन्हें वित्तीय बाधाओं और इसके संरक्षकों के निधन के कारण कभी महसूस नहीं किया गया था।
ताज-उल-मस्जिद भोपाल और उसके बाहर मुसलमानों के लिए महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है। यह पूजा, शिक्षा और सामुदायिक समारोहों के स्थान के रूप में कार्य करता है, जो दुनिया के विभिन्न हिस्सों से भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करता है।
ताज-उल-मस्जिद भोपाल की वास्तुकला कौशल और सांस्कृतिक विरासत का एक प्रमाण है। इसकी भव्यता और ऐतिहासिक महत्व इसे शहर के परिदृश्य में एक प्रतिष्ठित मील का पत्थर बनाता है।
ताज-उल-मस्जिद का इतिहास – History of taj-ul-masjid