राजा रानी मंदिर भारत के ओडिशा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित एक ऐतिहासिक मंदिर है। यह इस क्षेत्र के कम प्रसिद्ध लेकिन वास्तुकला की दृष्टि से महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है।
राजा रानी मंदिर के निर्माण की सही तारीख अनिश्चित है, लेकिन आम तौर पर माना जाता है कि इसका निर्माण 11वीं शताब्दी के दौरान हुआ था।
यह मंदिर अपनी अनूठी स्थापत्य शैली के लिए प्रसिद्ध है, जिसे अक्सर मंदिर के बाद “राजा रानी शैली” के रूप में वर्णित किया जाता है। क्षेत्र के कई अन्य मंदिरों के विपरीत, राजा रानी मंदिर में कोई निर्दिष्ट इष्टदेव नहीं है, और यह किसी विशिष्ट संप्रदाय या धार्मिक परंपरा से जुड़ा नहीं है।
मंदिर की विशेषता इसकी जटिल नक्काशीदार मूर्तियां और अलंकृत सजावट है। मंदिर के बाहरी हिस्से को जटिल भित्तिचित्रों से सजाया गया है, जिसमें नर्तकियों, संगीतकारों और प्रेमी जोड़ों सहित दैनिक जीवन के विभिन्न दृश्यों को दर्शाया गया है। यह मंदिर अपनी जटिल नक्काशीदार महिला आकृतियों के लिए जाना जाता है, जिन्हें अक्सर “मधुकरी सखियां” कहा जाता है, जिन्हें ओडिशा कला के कुछ बेहतरीन उदाहरण माना जाता है।
मंदिर का नाम “राजा रानी” इसके निर्माण में उपयोग किए गए बलुआ पत्थर के प्रकार से पड़ा है, जिसे स्थानीय रूप से “राजा रानी” के नाम से जाना जाता है। यह नाम किसी ऐतिहासिक राजा या देवता से जुड़ा नहीं है।
क्षेत्र के कई अन्य मंदिरों के विपरीत, राजा रानी मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति या देवता नहीं है। इससे इसके मूल उद्देश्य और कार्य के संबंध में विभिन्न सिद्धांत सामने आए हैं।
राजा रानी मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल ही नहीं बल्कि महत्वपूर्ण पुरातात्विक महत्व का भी है। जटिल नक्काशी और मूर्तियां मध्ययुगीन काल के दौरान क्षेत्र की कला और संस्कृति में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।
राजा रानी मंदिर एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है, जो ओडिशा की समृद्ध वास्तुकला विरासत की खोज में रुचि रखने वाले आगंतुकों को आकर्षित करता है। शांत और सुव्यवस्थित वातावरण मंदिर के आकर्षण को बढ़ाता है।
जबकि सटीक ऐतिहासिक विवरण और राजा रानी मंदिर का मूल उद्देश्य विद्वानों की बहस का विषय बना हुआ है, इसकी स्थापत्य सुंदरता और सांस्कृतिक महत्व इसे ओडिशा के मंदिर वास्तुकला में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बनाता है।
राजा रानी मंदिर का इतिहास – History of raja rani temple