माता ज्वाला जी मंदिर का इतिहास

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माता ज्वाला जी मंदिर का इतिहास

हिन्दू लोग अपने सभी देवी देवताओं की पूजा बहुत ही श्रद्धा और विधि विधान से करते हैं । यह पर स्थित हर मंदिर की अपनी एक कहानी और अपना इतिहास है आज में आपको एक ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रही हूँ । आज में जिस मंदिर के बारे में बताने जा रही हु यह मंदिर 51 शक्ति पीठो में से एक है और इस मंदिर का नाम है ज्वाला माता मंदिर।

माता ज्वाला देवी का यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कागड़ा जिले में स्थित हैं । कहा जाता हैं कि जब माता सती का जला हुआ शरीर लेकर भगवान शिव ब्रह्माण्ड में इधर उधर घूम रहे थे तभी माता के शरीर से उनकी जीभा इसी स्थान पर गिरी थी इसी कारण से इस स्थान का नाम ज्वाला देवी मंदिर पडा । इस मंदिर को जोता वाली माता का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता हैं । इस मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवो को जाता हैं । मंदिर मैं माता की कोई भी मूर्ति स्थापित नहीं है अपितु माता यह स्वयं ज्वाला के रूप में उपस्थित है यहां पर माता का दर्शन ज्योति के रुप मे होते है ।जो हजारों सालों से यह इसी रूप में प्रज्वलित हैं ।

इस मंदिर से जुडी कुछ कथाए और मान्यताये है 

कहानी कुछ इस तरह है की भगवान शिव की शादी माता सती से हुई थी माता सती के पिता का नाम राजा दक्ष था वो भगवान शिव को अपने बराबर नहीं मानता था | एक बार महाराज दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ का आयोजन किया उन्होंने सभी देवी देवताओं की निमंत्रण भेजा किन्तु भगवान शिव और माता सती को निमंत्रण नहीं भेजा गया | यह देखकर माता सती को बहुत क्रोध आया और उन्होंने वह जाकर अपने पिता से इस अपमान का कारण पूछने के लिए उन्होंने शिव भगवान से वह जाने की आज्ञा मांगी किन्तु भगवान शिव ने उन्हें वह जाने से मना की किन्तु माता सती के बार बार आग्रह करने पर शिव भगवान ने उन्हें जाने दिया | जब बिना बुलाए यज्ञ में पहुंची तो उनके पिता दक्ष ने उन्हें काफी बुरा भला कहा और साथ ही साथ भगवान शिव के लिए काफी बुरी भली बातें कही जिसे माता सती सहन नहीं कर पाई और उन्होंने उसी यज्ञ की आग में कूद कर अपनी जान दे दी | यह देख कर भगवान शिव को बहुत क्रोध आया और उन्होंने माता सती का जला हुआ शरीर अग्नी कुंड से उठा कर चारों और तांडव करने लग गये जिस कारण सारे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया यह देख कर लोग भगवान विष्णु के पास भागे तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े किये ये टुकड़े जहाँ जहाँ गिरे वह पर शक्ति पीठ बन गए |इसी स्थान पर माता के शरीर से उनकी जीभा थी इसी कारण से इस स्थान का नाम ज्वाला देवी मंदिर पडा । इस मंदिर को जोता वाली माता का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता हैं ।

पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल मे माँ के एक बहुत ही प्रिय भक्त थे गुरु गोरखनाथ जी । जो माँ की पूजा अर्चना बहुत ही विधि विधान से ओर दिल से करता था एक बार गोरखनाथ को भूख लगी तब उसने माता से कहा कि आप आग जलाकर पानी गर्म करे , में भिक्षा मांगकर लाता हू। माँ ने भक्त के कहे अनुसार आग जलाकर पानी गर्म किया और गुरु गोरखनाथ का इंतजार करने लगी पर गोरखनाथ जी आज तक कभी लौट कर नही आए कहा जाता है कि माँ आज भी ज्वाला जलाकर अपने भक्त का इंतजार कर रही हैं । कहा जाता हैं कि कालांतर में इस स्थान को व्यवस्थित किया गुरु गोरखनाथ जी ने । यह पर प्रज्वलित माता की ये ज्वाला प्रकृति नही अपितु बहुत चमत्कारी है । माता के मंदिर के ऊपर की और जाने पर गुरु गोरखनाथ जी का मंदिर हैं जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है । माता के मंदिर माता के 51 शक्ति पीठो में से एक है । जिन सभी की उत्पत्ति की कथा एक ही है यह पर स्थित सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुए है । इन सभी स्थलो पर माता सती के अंग गिरे थे ।

इस मंदिर से जुड़ी एक और कथा है 

कहा जाता हैं कि सतयुग में महाकाली के परम भगत राजा भूमिचन्द को माता का स्वपन में साक्षात्कार हुआ । जिसे प्रेरित होकर राजा ने यह पर एक सुंदर से मंदिर का निर्माण किया। बाद में महराजा रणजीत सिंह और रस्सज संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का निर्माण कराया । इस मंदिर के अंदर माता की नो ज्योतियां हैं जिनमें महाकाली , अनपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता हैं।

माता से जुड़ी एक और कथा जो काफी प्रचलित है ।
कहा जाता हैं कि जब अकबर दिल्ली का राजा हुआ करता था । उस समय ध्यानु नाम का माता का एक भक्त था । जो माता की दिल से पूजा करता था वह अपने गांव में ध्यानूभक्त के नाम से जाना जाता था । एक बार वह अपने सभी गांव वालों के साथ माता के दर्शन करने के लिए ज्वाला जी की ओर निकला । जब वह माता का जे कारा लगाते हुए दिल्ली से होकर गुजरने लगे तो मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने उन्हें रोका और बादशाह के दरबार में पेश होने को कहा जब ध्यानु भक्त अपने सभी गांव वाशियों के साथ अकबर के दरबार मे पहुचे । दरबार मे पहुंच कर अकबर ने उनसे पूछा कि तुम सब कहा जा रहे हो तब ध्यानु भक्त ने उन्हें बताया कि वो सब ज्योति वाली माता रानी के दर्शन करने जा रहे हैं अकबर ने ध्यानु भक्त से पूछा कि तुम्हारी यह माँ क्या क्या कर सकती हैं तब ध्यानु भक्त ने बड़े प्यार से उन्हें उत्तर दिया कि है महाराज वो तो सारी जगत की माँ है वो बहुत शक्तिशाली और दयालु है ऐसा कोई भी कार्य नही है जो माता रानी नहीं कर सकती । यह सुन कर राजा को बहुत आश्चर्य हुआ उसने ध्यानु भक्त के घोड़े की गर्दन काट दी और ध्यानु भक्त से कहा कि अगर तुम्हारी माँ इतनी शक्तिशाली है तो वह इस घोडे की गर्दन को दुबारा जोड़ कर दिखाएं यह सुन कर ध्यानु भक्त माता की स्तुति करने लगा जब माता को आने में थोड़ा विलंब हुआ तो ध्यानु भक्त ने अपनी गर्दन काट कर माता के चरणों में रख दी उसी समय ध्यानु भक्त और घोडे की गर्दन अपने आप जुड गई और घोड़ा फिर से खड़ा हो गया । यह देखकर अकबर हैरान हों गया । वह भी माता के दर्शन के लिए सोने का छत्र लेकर गया उसे अपने सोने के छत्र चढ़ाने पर बड़ा अभिमान हो गया । जैसे ही वह माता के मंदिर में छत्र चढ़ाने लगा तभी माता ने उस छत्र को नीचे गिरा दिया और उसे जल दिया । आजतक कोई भी यह जान नहीं पाया कि आखिर वह छत्र किस धातु का बन गया।

माता का मंदिर बहुत ही सुंदर और भव्य है मंदिर में प्रवेश करते ही बाई और अकबर नहर है जो अकबर ने बनवाई थी । नवरात्रों के दिनों में यह पर भक्तों की लंबी लाइने लगी होती है लाखों की संख्या में भक्त माता रानी के दर्शन करने के लिए वह आते है ।