भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के श्रीशैलम में स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर, भगवान शिव को समर्पित बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

माना जाता है कि मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर की उत्पत्ति प्राचीन है, जिसका उल्लेख विभिन्न प्राचीन ग्रंथों और धर्मग्रंथों में मिलता है। यह हिंदू धार्मिक परंपरा, विशेषकर शैव संप्रदाय में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

पौराणिक कथा के अनुसार, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग राक्षस अंधका की कहानी से जुड़ा है, जिसे भगवान शिव ने हराया था। यह मंदिर ऋषि अगस्त्य की कहानी और पास में बहने वाली कृष्णा नदी की पवित्रता से भी जुड़ा हुआ है।

यह मंदिर न केवल ज्योतिर्लिंग के लिए बल्कि देवी भ्रामराम्बा के लिए भी प्रसिद्ध है, जिनकी पूजा भगवान मल्लिकार्जुन के साथ की जाती है। किंवदंती के अनुसार, दोनों देवता एक समय दिव्य जोड़े थे, और उनका मंदिर इस पवित्र मिलन को दर्शाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव और देवी पार्वती (भ्रमरम्बा) यहां ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ के रूप में प्रकट हुए थे।

मंदिर की वास्तुकला और शिलालेखों से पता चलता है कि इसका निर्माण 7वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास चालुक्य राजवंश के दौरान किया गया था। समय के साथ, विजयनगर साम्राज्य सहित विभिन्न राजवंशों ने मंदिर के विस्तार और रखरखाव में योगदान दिया।

मंदिर में जटिल नक्काशी और एक भव्य गर्भगृह के साथ पारंपरिक दक्षिण भारतीय वास्तुकला है। मुख्य देवता, मल्लिकार्जुन (शिव का एक रूप), एक काले पत्थर के लिंगम द्वारा दर्शाया गया है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर भगवान शिव के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहां मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में महा शिवरात्रि और वार्षिक ब्रह्मोत्सवम शामिल हैं, जो बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करते हैं।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर न केवल एक आध्यात्मिक केंद्र है, बल्कि क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का प्रमाण भी है। इसका महत्व केवल धार्मिक अभ्यास से परे है, जो भारतीय परंपरा में गहरी पौराणिक और ऐतिहासिक जड़ों को दर्शाता है।

 

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास – History of mallikarjuna jyotirlinga temple

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