जैन धर्म का इतिहास || History of jainism

जैन धर्म को भारत के प्राचीन धर्मों में से एक माना जाता है। जैन ग्रंथों के अनुसार यह धर्म अनंतकाल से माना जाता रहा है, हालाँकि यह जनमानस में बड़े स्तर पर महावीर स्वामी के बाद फैलता नज़र आता है। जैन शब्द को ‘जिन’ शब्द से निकला हुआ माना जाता है। जिन’ शब्द ‘जि’ धातु से निकला है जिसका अर्थ है जीतना। इस धर्म की परंपरा का निर्वाह तीर्थंकरों के माध्यम से होता हुआ आज के स्वरूप तक पहुँचा है। जैन धर्म में 24 तिर्थंकर हुए। जिसमें से पहले थे ऋषभदेव तथा अंतिम महावीर स्वामी। इस धर्म की प्राचीनता को सिद्ध करते हुए ऋषभदेव को राजा भरत का पिता तक माना जाता है। जैन धर्म अपने साहित्यिक पक्ष का भी धनी रहा है जो इसकी प्राचीनता को पुष्ट करता है। यह धर्म ‘अहिंसा’ के सिद्धांत को बहुत ही सख़्ती से मानता है। इस धर्म के दो प्रमुख सम्प्रदाय हैं – ‘दिगम्बर‘ और ‘श्वेतांबर‘। जैनियों के धार्मिक स्थल को जिनालय कहा जाता है।

जैन बिलो के अनुसार वस्तु का स्वाभाव समझा जाता है, इसलिए जब से सृष्टि है तब से धर्म है, और जब तक सृष्टि है, तब तक धर्म रहेगा, अर्थात् जैन धर्म सदा से अस्तित्व में था और सदा रहेगा। इतिहासकारो द्वारा जैन धर्म का मूल भी सिंधु घाटी सभ्यता से जोड़ा जाता है जो हिन्द आर्य प्रवास से पूर्व की देशी आध्यात्मिकता को दर्शाता है। सिन्धु घाटी से मिले जैन शिलालेख भी जैन धर्म के सबसे प्राचीन धर्म होने की पुष्टि करते है।अन्य शोधार्थियों के अनुसार श्रमण परम्परा ऐतिहासिक वैदिक धर्म के हिन्द-आर्य प्रथाओं के साथ समकालीन और पृथक हुआ।जैन ग्रंथो के अनुसार वर्तमान में प्रचलित जैन धर्म भगवान आदिनाथ के समय से प्रचलन में आया। यहीं से जो तीर्थंकर परम्परा प्रारम्भ हुयी वह भगवान महावीर या वर्धमान तक चलती रही जिन्होंने ईसा से ५२७ वर्ष पूर्व निर्वाण प्राप्त किया था। उनके अनुसार यह धर्म बौद्ध धर्म के पीछे उसी के कुछ तत्वों को लेकर और उनमें कुछ ब्राह्मण धर्म की शैली मिलाकर खडा़ किया गया।

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