गरुड़ पुराण पहला अध्याय

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गरुड़ पुराण पहला अध्याय

प्राचीन समय की बात है, कि नैमिषारण्य क्षेत्र में शोनक आदि ऋषियों ने अनेक महर्षियो के साथ 7000 वर्ष पर्यंत चलने वाले यज्ञ को प्रारंभ किया था, जिससे उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हो सके।

उस क्षेत्र में सूत जी पधारे तब ऋषियों ने उनका बहुत आदर सत्कार किया। क्योंकि सूत जी पौराणिक कथा कहने में सिद्धहस्त थे, और उन्होंने विभिन्न रूपों से अनुभव प्राप्त किया हुआ था।

इसीलिए सारे ऋषियों ने उनसे कहा, आप हमे इस संसार, भगवान, यमलोक, तथा, दूसरे शुभ, अशुभ कर्मो के बारे में बताए, जिससे मनुष्य किस रूप को प्राप्त होता है ,इसका ज्ञान हमे देने की कृपया करे।

सूतजी ने कहा, इस संसार जगत के निर्माता भगवान विष्णु है। वो जल में रहते हे, इसीलिए उनका नाम नारायण है। वह लक्ष्मी जी के पति है। भगवान विष्णु ने हर युग में भिन्न-भिन्न अवतार धारण करके पृथ्वी पर जन्म लिया है, ताकि वह अधर्म का नाश कर सके और पृथ्वी की रक्षा कर सके।

भगवान विष्णु ने राम का अवतार लिया और लंका के राजा रावण का वध करके अधर्म को खत्म किया। उन्होंने नरसिंह रूप में राजा हिरण्यकश्यप का वध करके भक्त प्रहलाद एवं दूसरे प्रजा की रक्षा की।

भगवान विष्णु ने वराहरूप में भी अवतार लिया ताकि पृथ्वी का उद्धार कर सके और फिर मत्स्य रूप में अवतार लिया।

वेदव्यास जी भगवान विष्णु के ही अंश है। वेदव्यास जी ने यह पुराणों की रचना की है। कहा जाता है की एक सर्वोत्तम वृक्ष भगवान विष्णु है, उसकी दृढ़, मूल धर्म है, उसकी शाखाएं वेद है, उस वृक्ष के फूल रूप में यज्ञ को माना गया है और फल के रूप में मोक्ष को माना गया है। वह सर्वोत्तम वृक्ष रूपी भगवान विष्णु ही सारे फल और मोक्ष को देते है।

एक समय पर पार्वती जी ने भगवान शिव से पूछा था, आप खुद ही एक भगवान है,इस संसार के रचायता है, तो आप किस का ध्यान करते रहते है।

यह सुनकर भगवान शिव ने कहा, में देवो और ऋषियों का ध्यान करता हुं उसमे विष्णु ही श्रेष्ठ है। इस संसार में परम ब्रह्म भगवान नारायण,विष्णु है और उन्ही का चिंतन करता हूं। भगवान विष्णु ही अनेक रूप में अवतार लेने वाले परम ब्रह्म है। भगवान विष्णु ही अनेक रूप में पृथ्वी पर अवतार लेकर अधर्म का नाश करके धर्म की स्थापना करते है। इस प्रकार भगवान शिव ने पार्वती जी को भगवान विष्णु की महिमा बताई थी।

शिव पुराण पहला अध्याय || शिव पुराण अध्याय 1

तब ऋषियों को दूसरी बाते जानने की उत्सुकता हुई। ऋषियों ने सूतजी से कहा, हे प्रभु! आपने भगवान विष्णु के श्रेष्ठता के बारे में हमे जो भी ज्ञान दिया वह अत्यंत भयमुक्त करने वाला ज्ञान हे।

इसके अतिरिक्त आप हमे यह बताइए की इस सृष्टि में आने के बाद भोगने वाले दुख और कष्ट को नाश कैसे किया जाता है? कृपा करके इसका उपाय हमे बताइए। आपके पास इस लोक एवं परलोक के दुखो का निवारण करने का ज्ञान है। हम यह जानना चाहते ही है, की यमराज के मार्ग तक पहुंचने में मनुष्य को किस प्रकार की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।

वचन बद्ध

पौराणिक कथा

प्राचीन समय की बात है, कि नैमिषारण्य क्षेत्र में शोनक आदि ऋषियों ने अनेक महर्षियो के साथ 7000 वर्ष पर्यंत चलने वाले यज्ञ को प्रारंभ किया था, जिससे उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हो सके।

उस क्षेत्र में सूत जी पधारे तब ऋषियों ने उनका बहुत आदर सत्कार किया। क्योंकि सूत जी पौराणिक कथा कहने में सिद्धहस्त थे, और उन्होंने विभिन्न रूपों से अनुभव प्राप्त किया हुआ था।

इसीलिए सारे ऋषियों ने उनसे कहा, आप हमे इस संसार, भगवान, यमलोक, तथा, दूसरे शुभ, अशुभ कर्मो के बारे में बताए, जिससे मनुष्य किस रूप को प्राप्त होता है ,इसका ज्ञान हमे देने की कृपया करे।

सूतजी ने कहा, इस संसार जगत के निर्माता भगवान विष्णु है। वो जल में रहते हे, इसीलिए उनका नाम नारायण है। वह लक्ष्मी जी के पति है। भगवान विष्णु ने हर युग में भिन्न-भिन्न अवतार धारण करके पृथ्वी पर जन्म लिया है, ताकि वह अधर्म का नाश कर सके और पृथ्वी की रक्षा कर सके।

भगवान विष्णु ने राम का अवतार लिया और लंका के राजा रावण का वध करके अधर्म को खत्म किया। उन्होंने नरसिंह रूप में राजा हिरण्यकश्यप का वध करके भक्त प्रहलाद एवं दूसरे प्रजा की रक्षा की।

भगवान विष्णु ने वराहरूप में भी अवतार लिया ताकि पृथ्वी का उद्धार कर सके और फिर मत्स्य रूप में अवतार लिया।

वेदव्यास जी भगवान विष्णु के ही अंश है। वेदव्यास जी ने यह पुराणों की रचना की है। कहा जाता है की एक सर्वोत्तम वृक्ष भगवान विष्णु है, उसकी दृढ़, मूल धर्म है, उसकी शाखाएं वेद है, उस वृक्ष के फूल रूप में यज्ञ को माना गया है और फल के रूप में मोक्ष को माना गया है। वह सर्वोत्तम वृक्ष रूपी भगवान विष्णु ही सारे फल और मोक्ष को देते है।

एक समय पर पार्वती जी ने भगवान शिव से पूछा था, आप खुद ही एक भगवान है,इस संसार के रचायता है, तो आप किस का ध्यान करते रहते है।

यह सुनकर भगवान शिव ने कहा, में देवो और ऋषियों का ध्यान करता हुं उसमे विष्णु ही श्रेष्ठ है। इस संसार में परम ब्रह्म भगवान नारायण,विष्णु है और उन्ही का चिंतन करता हूं। भगवान विष्णु ही अनेक रूप में अवतार लेने वाले परम ब्रह्म है। भगवान विष्णु ही अनेक रूप में पृथ्वी पर अवतार लेकर अधर्म का नाश करके धर्म की स्थापना करते है। इस प्रकार भगवान शिव ने पार्वती जी को भगवान विष्णु की महिमा बताई थी।

तब ऋषियों को दूसरी बाते जानने की उत्सुकता हुई। ऋषियों ने सूतजी से कहा, हे प्रभु! आपने भगवान विष्णु के श्रेष्ठता के बारे में हमे जो भी ज्ञान दिया वह अत्यंत भयमुक्त करने वाला ज्ञान हे।

इसके अतिरिक्त आप हमे यह बताइए की इस सृष्टि में आने के बाद भोगने वाले दुख और कष्ट को नाश कैसे किया जाता है? कृपा करके इसका उपाय हमे बताइए। आपके पास इस लोक एवं परलोक के दुखो का निवारण करने का ज्ञान है। हम यह जानना चाहते ही है, की यमराज के मार्ग तक पहुंचने में मनुष्य को किस प्रकार की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।

सूतजी ने कहा – एक समय पर गरुड़ जी ने भी ऐसा प्रश्न भगवान विष्णु से किए थे, उस समय भगवान ने जो भी ज्ञान दिया था, वह ज्ञान में आप लोगो को दूंगा। यम का मार्ग बहुत कष्ट वाला है। किंतु आप अगर अपने कल्याण के लिए यह जानना चाहते है, तो में आप लोगो को इसके बारे में बताता हुं।

गरुड़ जी ने जब भगवान विष्णु से पूछा था, की आप के नाम की आराधना करना तो अत्यंत सरल है। आपकी भक्ति करने के उपरांत भी मनुष्य नरक में क्यू जाता है। आपकी भक्ति के भिन्न-भिन्न मार्ग और गतियां है, फिर भी मनुष्य जब आपकी भक्ति से वंचित रह जाता है, तो उसे यह दुर्गम मार्ग कैसे मिलता है, और इसके कष्ट क्या हो सकते है? पाप करने वाले पापीयो की किस प्रकार दुर्गति होती है, और किस रूप में उनको नरक मिलता है? आप मुझे कृपा करके बताए।

ऐसे पूछने पर भगवान विष्णु ने गरुड़ जी को कहा – हे गरुड़! में तुम्हे यम के मार्ग का ज्ञान देता हू, इसी मार्ग से पापी लोग यमलोक को प्राप्त करते है। इसका वर्णन अत्यंत भयानक है।

जो मनुष्य उग्र स्वभाव के होते हे, धन और मर्यादा का ज्ञान जिसमे नही हे, जिनको संसार में मोह माया है, वो मनुष्य अपवित्र होते है, और वही नरकलोक में जाते है। दानवीर मनुष्य मोक्ष को प्राप्त करते है, और पापी लोग कष्ट पूर्वक यम की पीड़ा भोगते हुए नरक में जाते है।

दुष्ट और पापी लोगो को इस संसार में किस प्रकार के दुख मिलते हे, उनकी मृत्यु किस प्रकार होती हे, उसका ज्ञान में तुम्हे देता हू। इस संसार में जब मनुष्य जन्म लेता ही है, तब वह अपने पूर्व जन्म के कर्मो के हिसाब से इस जन्म में शुभ, अशुभ फल भोगता है।

बुरे कर्मो के प्रभाव से व्यक्ति को रोग हो जाता है। परेशानियां और रोग से पीड़ित वह व्यक्ति निराश हो जाता है। व्यक्ति कितना भी बलवान हो युवावस्था में उसके पत्नी, पुत्र होने के बावजूद वह अचानक से भयभीत होने लगता है। काल उसको घेर लेता है। वृद्धा अवस्था में व्यक्ति को मृतक के समान रहना पड़ता है। घर के लोगो के द्वारा अपमानित होता है, और अपमान जनक आहार लेता है।

आहार लेने की शक्ति कम हों जाती हे, और इसकी वजह से चलने फिरने की शक्ति भी कम हो जाती हे। कफ के कारण स्वर्ण नलिया चल नही पाती। स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है। खटिया पे पड़ा रहता है। मृत्यु के निकट आ जाता है। मृत्यु के निकट आने पर देवता जैसे मनुष्य की दृष्टि भी दिव्य हो जाती है।

मरते समय पापी के पांचों तत्व अपने स्थान छोड़ देते है, और उसका एक क्षण भी मुश्किल से बीतता है। मनुष्य को इतनी पीड़ा होती हे, जितनी बिच्छू के काटने से होती है।

शव को लेजाते समय राम नाम सत्य है क्यों बोला जाता है?

यमदूतों के भय से उसके मुंह से जाग और लार गिरने लगती है। ऐसे ही पापिओ के प्राण जब निकलते है, तब उनको यमदूत मिलते है। यमदूत के लाल नेत्र होते हे, और मुख भयानक होता है।

उस समय यमदूत अत्यंत क्रोधित होते है, और उनके हाथ में पाश और दंड होता है, और वह दांत को पिसते है। उनके मुख काले और नख विशाल होते है। उनको देखकर प्राणी भयभीत होकर मलमूत्र का त्याग करने लगता है।

ऐसी अवस्था में जीव शरीर से निकल जाता ही है, और मोह में अपने घर को देखता है, और उसी समय यमदूत उसे पकड़ लेते है। यमदूत उसे गले में रस्सी बांधकर ऐसे ले जाते हे, जैसे गुनेगार को सिपाही राजा के पास ले जाते है।

वे यमदूत मनुष्य को मार्ग में नर्क के भयानक दुःख और तकलीफों के बारे में बताते है, और धमकियां भी देते है। यमदूतों की ऐसी कठोर वाणी को सुनता है, और तड़पता है। भय से तड़पता वह मनुष्य अपने पापों को याद करते हुए उस मार्ग से जाता है। कुत्ते मार्ग में उसे काटते है।

उस मार्ग में उसे खाने को खाना और पानी नहीं मिलता। सूर्य की तेज गर्मी में चलना पड़ता है। यमदूत उसे मार्ग में कूड़े से मारता है, और घसीटकर ले जाते है। इस प्रकार अत्यंत पीड़ा सहकर वह अंधकारमय यमलोक में पहुंच जाता है।

वहां उसे उसके पापों का फल मिलता है। यमराज उसे घोर नरक की यातना देकर फिर से मनुष्य लोक में भेजते है। अपने पुत्रों द्वारा दिए गए पिंड और दान को वह जीव खाता है, पर फिर भी पापी जीव होने के कारण उसकी तृप्ति नहीं होती।

जिस मनुष्य का पिंड दान नहीं होता वह प्रेत योनि में रहकर निर्जन वन में दुख पूर्वक भ्रमण करते है। यम की यातना भोग बिना जीव को मनुष्य के रूप में जन्म नही मिलता और वह अन्य योनियों में भटकता रहता है।

गरुड़ पुराण – मृत्यु के बाद मरणासन्न व्यक्ति के कल्याण के लिए किए जाने वाले कर्म

उस पिंड के रोज चार भाग होते है। उसमे से दो भाग पंचभूतो को एक भाग यमदूतों को और एक भाग उस जीव को खाने को मिलता है। ऐसे 9 दिन तक पिंडदान करते ही है, और वे लोग खाते है।

जब मनुष्य का शरीर जलाते है, उसके बाद उनके पुत्र जो पिंडदान 9 दिन करते है, उसे उस जीव को दसवें दिन देह मिलता है। वह जीव को देह आकार यमलोक मार्ग में अपने कर्मोंकांफ भोगना पड़ता है।

अब किस तरह से 10 दिनों के पिंड से शरीर बनता है, उसे बताता हूं। पहले दिन के पिंड से सिर, दूसरे दिन से गर्दन और कंधा, तीसरे दिन हृदय, चौथे दिन पीठ, पांचवे दिन नाभी, छठे दिन कमर, गुदा, लिंग, भग और मांस केनपिंड आदि बनते है। सातवे दिन हड्डी और आठवें नौवे दिन जांगह और पैर , दसवें दिन के पिंड से इस शरीर में सुख ,सुंधा, तृषा की उत्पत्ति होती है।

इस तरह पिंड से शरीर उत्तपन्न होता है, और फिर ग्यारवे और बारहवें दिन के श्राद्ध में 2 दिन तक भोजन करता है। तेरहवे दिन वह जीव यमदूतों से बंधा हुआ अकेला संसार में आता है।

हे! गरुड़! वैतरणी को छोड़कर केवल यमलोक 86000 योजन विस्तीर्ण है। अब इस जीवन में रोज 24 घंटो में क्रमशः 247 योजन यमदूतों के संघ निरंतर चलना पड़ता है। चलने वाले इस मार्ग के अंत में 16 ग्राम पड़ते है। उनको पार करके धर्मराज के नगर में वो पापी जीव पहुंच पाता है।

उन सब नगर के नाम कुछ इस प्रकार है, सौम्य पुल, सौरीपुर, नगेंद्रभवन, गंधर्व, शैलागम, क्रौंच, क्रूरपुर, विचित्रभवन, दूं, खद, नानकरंदपुर, सुतप्त भवन, रौद्र नगर, पयोवर्षण, शितध्य, बहुभिति के नाम से जाने जाते है। इसके बाद यमपुर है। यमलोक में जाने वाला मनुष्य अत्यंत पीड़ा भोगता है और अपने कर्मो को याद करते हुए पीड़ित होता रहता है।

अपने कर्मों के विषय में चिंतन करता हुआ, अनेक दुख भोगता है, इस पर भी यदि वो दुबारा जन्म प्राप्त करता है, तब उसी प्रकार भगवान को भूलकर कर्म करता है।