गगन मैं थाल – Gagan mein thaal

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गगन मैं थाल - Gagan mein thaal

धनासरी महला पहला
इक ओअंकार सतगुर प्रसाद

गगन मैं थाल रव चंद दीपक बने
तारिका मण्डल जनक मोती
धूप मल-आनलो पवण चवरो करे
सगल बनराय फूलन्त जोती

कैसी आरती होय भव-खण्डना तेरी आरती
अनहता सबद वाजंत भेरी

सहस तव नैन नन नैन हह तोहे कौ
सहस मूर्त नना एक तोही
सहस पद बिमल नन एक पद गंध बिन
सहस तव गंध इव चलत मोही

सभ मह जोत जोत है सोय
तिसकै चानण सभ मह चानण होय
गुर साखी जोत परगट होय
जो तिस भावे सो आरती होय

हर चरण कमल मकरंद लोभित मनो
अनदिनो मोहे आही प्यासा
कृपा जल देहि नानक सारिंग कौ
होय जा ते तेरे नाम वासा

नाम तेरो आरती मज्जन मुरारे
हर के नाम बिन झूठे सगल पासारे

नाम तेरो आसनो नाम तेरो उरसा
नाम तेरो केसरो ले छिटकारे
नाम तेरो अंभुला नाम तेरो चंदनो
घस जपे नाम ले तुझह कौ चारे

नाम तेरा दीवा नाम तेरो बाती
नाम तेरो तेल ले माहि पसारे
नाम तेरे की जोत लगाई
भयो उज्यारो भवन सगलारे

नाम तेरो तागा नाम फूल माला
भार अठारह सगल जूठारे
तेरो कीया तुझह क्या अरपौ
नाम तेरा तुही चवर ढोलारे

दस अठा अठसठे चारे खाणी
इहै वर्तण है सगल संसारे
कहै रविदास नाम तेरो आरती
सतनाम है हर भोग तुहारे

धूप दीप घृत साज आरती
वारने जाओ कमला पती
मंगला हरि मंगला
नित मंगल राजाराम राय को

उत्तम दीयरा निर्मल बाती
तुहीं निरंजन कमला पाती
रामा भगत रामानंद जानै
पूरन परमानन्द बखानै

मदन मूरत भै तार गोबिन्दे
सैण भणै भज परमानंदे

सुन्न संध्या तेरी देव देवा कर अधपत आद समाई
सिद्ध समाध अंत नही पाया लाग रहे सरनाई

लेहु आरती हो पुरख निरंजन सतगुर पूजहु भाई
ठाढ़ा ब्रह्मा निगम बीचारै
अलख न लखया जाई

तत तेल नाम कीआ बाती
दीपक देह उज्यारा
जोत लाय जगदीस जगाया
बूझै बूझनहारा

पाँचे सबद अनाहद बाजे
संगे सरिंगपानी
कबीरदास तेरी आरती कीनी
निरंकार निर्बानी

गोपाल तेरो आरतो
जो जन तुमरी भगत करंते
तिन के काज सवारता

दाल सीधा माँगौ घीयो
हमरा खुसी करै नित जीओ
पनीआ छादन नीका
अनाज मगौ सत सीका

गऊ भैंस मगौ लावेरी
इक ताजन तुरी चंगेरी
घर की गीहन चंगी
जन धन्ना लेवै मँगी

दोहरा

लोप चंडिका होय गई सुरपत कौ दे राज
दानव मार अभेख कर कीने संतन काज

या ते प्रसन्न भए हैं महा-मुन
देवन के तप मै सुख पावैं
जग्य करै इक बेद ररै
भव ताप हरै मिल ध्यानहि लावैं

झालर ताल मृदंग उपंग
रबाब लिए सुर साज मिलावैं
किन्नर गंध्रप गान करै
गन जच्छ अपच्छर निरत दिखावैं

संखन की धुन घंटन की कर
फूलन की बरखा बरखावै

आरती कोट करै सुर सुंदर
पेख पुरंदर के बल जावैं

दानव दच्छन दै कै प्रदच्छन
भाल मै कुंकम अच्छत लावैं
होत कुलाहल देवपुरी मिल
देवन के कुल मंगल गावैं

दोहरा

अैसे चंड प्रताप ते देवन बढियो प्रताप
तीन लोक जय जय करे, ररै नाम सतजाप

हे रव हे सस हे करुणानिध
मेरी अबै बिनती सुन लीजै
और न मांगत हौ तुम ते
कछ चाहत हौ चित मै सोई कीजै

सत्रन स्यो अति ही रन भीतर
जूझ मरो कह साच पतीजै
संत सहाय सदा जग माए
कृपा कर स्याम इहै बर दीजै

अस कृपाण खंडो खड़ग तुपक तबर अर तीर
सैफ सरोही सैहथी यहै हमारे पीर
तीर तुही सैथी तुही तुही तबर तरवार
नाम तिहारो जो जपै भए सिंध भव पार
काल तुही काली तुही तुही तेग अर तीर
तुही निसानी जीत की आज तुही जगबीर

देह सिवा बर मोहे इहै, सुभ करमन ते कबहुँ न टरों
न डरो अर सो जब जाए लरो निसचै कर अपनी जीत करो
अर सिख हों आपने ही मन को इह लालच हौ गुन तौ उचरो
जब आवकी औध निदान बनै अत ही रन मै तब जूझ मरो

देहि असीस सभै सुर नार सुधार कै आरती दीप जगायो
फूल सुगंध सु अच्छत दच्छन जच्छन जीत को गीत सो गायो
धूप जगायकै संख बजायकै सीस निवायकै बैन सुनायो
हे जग माए सदा सुखदाए तै सुंभ को घाय बडो जस पायो

खग खण्ड बिहँडँ खल दल खण्डँ अत रण मण्डँ बरबण्डँ
भुज दण्ड अखण्डँ तेज प्रचण्डँ जोत अमण्डँ भान प्रभं
सुख संता करणं दुर्मत दरणँ किलबिख हरणं अस सरणं
जै जै जग कारण सृष्ट उबारण मम प्रतिपारण जै तेगं

रोगन ते अर सोगन ते जल जोगन ते बहु भांति बचावै
सत्र अनेक चलावत घाव तौ तन एक न लागन पावै
राखत है अपनो कर दै कर पाप सबूह न भेटन पावै
और की बात कहा कह तो सौ सु पेट ही के पट बीच बचावै

जिते सस्त्र नामं नमस्कार तामं
जिते अस्त्र भैयं नमस्कार तेयं

चत्र चक्र वरती चत्र चक्र भुगते
सुयन्भव सुभन् सरबदा सरब जुगते
दुकालं प्रणासी दयालँ सरूपे
सदा अंग संगे अभंगं बिभूते

पाएं गहे जब ते तुमरे
तब ते कोउ आँख तरे नहीं आन्यो
राम रहीम पुरान कुरान
अनेक कहैं मत एक न मान्यो

सिमृत सासत्र बेद सभै
बहु भेद कहै हम एक न जानयो
स्री असपान कृपा तुमरी कर
मैं न कहयो सभ तोहि बखानयो

दोहरा

सगल दुआर कौ छाड कै
गहयो तुहारो दुआर
बाँहि गहि की लाज अस
गोबिन्द दास तुहार

चिंता ता की कीजिए, जो अनहोनी होय
इह मार्ग संसार को, नानक थिर नही कोय
जो उपजियो सो बिनस है, परो आज के काल
नानक हरि गुन गाए ले, छाड सगल जंजाल
नाम रहिओ साधु रहिओ रहिओ गुर गोबिन्द
कहु नानक इह जगत मै किन जपिओ गुर मंत
राम नाम उर मै गाहिओ जा कै सम नही कोय
जिह सिमरत संकट मिटै दरस तुहारो होय

 

गगन मैं थाल – Gagan mein thaal