* बौद्ध धर्म ईश्वर और आत्मा को नहीं मानता है । इस बात को हम भारत के धर्मों के इतिहास में क्रांति कह सकते हैं । बौद्ध धर्म शुरू में दार्शनिक वाद-विवादों के जंजाल में फँसा नहीं था इसलिए यह सामान्य लोगों को भाया । यह विशेष रूप से निम्न वर्णों का समर्थन पा सका क्योंकि इसमें वर्ण व्यवस्था की निंदा की गई है ।
* बौद्ध संघ का दरवाजा हर किसी के लिए खुला रहता था चाहे वह किसी भी जाति का क्यों न हो । संघ में प्रवेश का अधिकार स्त्रियों को भी था जिससे उन्हें पुरुषों की बराबरी प्राप्त होती थी । ब्राह्मण धर्म की तुलना में बौद्ध धर्म अधिक उदार और अधिक जनतांत्रिक था ।
* बौद्ध धर्म वैदिक क्षेत्र के बाहर के लोगों को अधिक भाया और वे लोग आसानी से इस धर्म में दीक्षित हुए । मगध के निवासी इस धर्म की ओर तुरंत उन्मुख हुए, क्योंकि कट्टर ब्राह्यण उन्हें नीच मानते थे और मगध आर्यों की पुण्य भूमि आर्यावर्त्त अर्थात आधुनिक उत्तर प्रदेश की सीमा के बाहर पड़ता था । अभी भी उत्तर बिहार के लोग गंगा के दक्षिण मगध में मरना पसंद नहीं करते हैं ।
* बुद्ध के व्यक्तित्व और धर्मोपदेश की प्रणाली दोनों ही बौद्ध धर्म के प्रचार में सहायक हुए । वे भलाई करके बुराई को भगाने तथा प्रेम करके घृणा को भगाने का सयास करते थे । निंदा और गाली से उन्हें क्रोध नहीं आता था ।
* कठिन स्थितियों में भी वे धीर और शांत बने रहते थे और अपने विरोधियों का सामना चातुर्य और प्रत्युत्पन्नमति से करते थे । कहा जाता है कि एक बार एक अज्ञानी व्यक्ति ने उन्हें गालियाँ दीं । वे चुपचाप सुनते रहे ।उस व्यक्ति का गाली देना बंद हुआ तो उन्होंने पूछा ”वत्स, यदि कोई दान को स्वीकार नहीं करे तो उस दान का क्या होगा ?” विरोधी ने उत्तर दिया, ”वह देने वाले के पास ही रह जाएगा ।” तब बुद्ध ने कहा, ”वत्स, में तुम्हारी गालियाँ स्वीकार नहीं करता ।”
* जनसाधारण की भाषा पालि को अपनाने से भी बौद्ध धर्म के प्रचार में बल मिला । इससे आम जनता बौद्ध धर्म सुगमता से समझ पाई । गौतम बुद्ध ने संघ की स्थापना की जिसमें हर व्यक्ति जाति या लिंग के भेद के बिना प्रवेश कर सकता था ।
* भिक्षुओं के लिए एक ही शर्त थी कि उन्हें संघ के नियमों का निष्ठापूर्वक पालन करना होगा । बौद्ध संघ में शामिल होने के बाद इसके सदस्यों को इंद्रियनिग्रह अपरिग्रह (धनहीनता) और श्रद्धा का संकल्प लेना पड़ता था ।
* इस प्रकार बौद्ध धर्म के तीन प्रमुख अंग थे: बुद्ध, संघ और धम्म । संघ के तत्त्वावधान में सुगठित प्रचार की व्यवस्था होने से बुद्ध के जीवनकाल में ही बौद्ध धर्म ने तेजी से प्रगति की । मगध कोसल और कौशांबी के राजाओं अनेक गणराज्यों और उनकी जनता ने बौद्ध धर्म को अपना लिया ।
* बुद्ध के निर्वाण के दो सौ साल बाद प्रसिद्ध मौर्य सम्राट् अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया । यह युग-प्रवर्त्तक घटना सिद्ध हुई । अशोक ने अपने धर्मदूतों के द्वारा इस धर्म को मध्य एशिया पश्चिमी एशिया और श्रीलंका में फैलाया और इसे विश्व धर्म का रूप दिया ।
* आज भी श्रीलंका बर्मा और तिब्बत में तथा चीन और जापान के कुछ भागों में बौद्ध धर्म प्रचलित है । अपनी जन्मभूमि से तो यह धर्म लुप्त हो गया परंतु दक्षिण एशिया दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया के देशों में जीता-जागता है ।