बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग बौद्ध धर्म में साधकों के आध्यात्मिक एवं नैतिक प्रगति के लिए एक मार्ग है। इस मार्ग को ‘आठ पथ’ या ‘आठ आंग’ भी कहा जाता है। यह मार्ग मध्यमा पाठ, ध्यान, सम्यक्त्व, देशना, विमुक्ति, समाधि, श्रद्धा और प्रज्ञा – ये आठ अंगों से मिलकर बना होता है। इन आठ अंगों का पालन करने से भिक्षु या साधक आत्मज्ञान, शान्ति, मोक्ष और निर्वाण की प्राप्ति करता है। यहां नीचे दिए गए हैं अष्टांगिक मार्ग के आठ अंग:
- मध्यमा पाठ (Right View): सत्य की प्राप्ति, कर्मों के कारण दुःख की पहचान करना।
- ध्यान (Right Intention): संयमित चित्त के साथ सचेतता और उद्देश्य की स्थापना करना।
- सम्यक्त्व (Right Speech): सत्य और उचित वचन बोलना, अहिंसा की पालना करना।
- देशना (Right Action): शुद्ध और न्यायपूर्ण कर्म करना, अहिंसा और धार्मिकता का पालन करना।
- विमुक्ति (Right Livelihood): सत्य और न्यायपूर्ण आजीविका चुनना, जो किसी को हानि नहीं पहुंचाए।
- समाधि (Right Effort): दुःख से रहित समता एवं अभियांत्रिकीकरण की प्राप्ति करना।
- श्रद्धा (Right Mindfulness): ध्यान और जागृत चेतना का पालन करना।
- प्रज्ञा (Right Concentration): एकाग्रता, अद्वैत ज्ञान और मेधावी चित्त का समर्पण करना।
ये आठ अंग संतोष, आत्मसंयम, ध्यान, आत्मसाक्षात्कार और समय के साथ साधक की आध्यात्मिक प्रगति में मदद करते हैं। अष्टांगिक मार्ग बौद्ध धर्म के महात्माओं और शिक्षाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग ||Buddh ka Ashtangik marg