रमा एकादशी पर इस विशेष पाठ से पाएं भगवान विष्णु का आशीर्वाद और सुख-समृद्धि – Get blessings of lord vishnu and happiness and prosperity with this special recitation on rama ekadashi

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रमा एकादशी पर इस विशेष पाठ से पाएं भगवान विष्णु का आशीर्वाद और सुख-समृद्धि - Get blessings of lord vishnu and happiness and prosperity with this special recitation on rama ekadashi

भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी तिथि हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। हर महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, साथ ही व्रत भी रखा जाता है। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है। इस दिन विधिपूर्वक श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यदि इस पूजा के साथ तुलसी चालीसा का पाठ भी किया जाए, तो भाग्य जागृत होता है और जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।

इस वर्ष रमा एकादशी का व्रत 27 अक्टूबर 2024 को किया जाएगा। एकादशी तिथि की शुरुआत 27 अक्टूबर को सुबह 5:23 बजे होगी और इसका समापन 28 अक्टूबर को सुबह 7:30 बजे होगा। उदया तिथि के अनुसार, रमा एकादशी का व्रत 27 अक्टूबर को रखा जाएगा। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा करें।

* रमा एकादशी पूजा विधि –

– ब्रह्म मुहूर्त में स्नान के बाद शुद्ध वस्त्र धारण करें।

– भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर के समक्ष दीपक जलाएं।

– रोली, अक्षत, फूल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।

– श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें।

– व्रत का संकल्प लें और दिनभर उपवास करें।

* तुलसी चालीसा का महत्व और पाठ विधि –

रमा एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा के साथ तुलसी चालीसा का पाठ करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। तुलसी चालीसा के पाठ से न केवल पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि सोया हुआ भाग्य भी जागृत होता है।

* तुलसी चालीसा पाठ विधि:
1. पूजन के बाद शुद्ध स्थान पर बैठें।
2. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के समक्ष तुलसी चालीसा का पाठ करें।
3. तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाएं और तुलसी चालीसा का पाठ करें।

* रमा एकादशी का महत्व –

रमा एकादशी व्रत का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है। इस दिन उपवास और पूजा करने से सभी कष्टों का निवारण होता है और जीवन में सुख-शांति आती है। इस व्रत को करने से धन, ऐश्वर्य, और समृद्धि की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।

दोहा
जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी।
नमो नमो हरि प्रेयसी श्री वृन्दा गुन खानी॥
श्री हरि शीश बिरजिनी, देहु अमर वर अम्ब।
जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब॥

॥ चौपाई ॥
धन्य धन्य श्री तुलसी माता। महिमा अगम सदा श्रुति गाता॥
हरि के प्राणहु से तुम प्यारी। हरीहीँ हेतु कीन्हो तप भारी॥
जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो। तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो॥
हे भगवन्त कन्त मम होहू। दीन जानी जनि छाडाहू छोहु॥
सुनी लक्ष्मी तुलसी की बानी। दीन्हो श्राप कध पर आनी॥
उस अयोग्य वर मांगन हारी। होहू विटप तुम जड़ तनु धारी॥
सुनी तुलसी हीं श्रप्यो तेहिं ठामा। करहु वास तुहू नीचन धामा॥
दियो वचन हरि तब तत्काला। सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला॥
समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा। पुजिहौ आस वचन सत मोरा॥
तब गोकुल मह गोप सुदामा। तासु भई तुलसी तू बामा॥
कृष्ण रास लीला के माही। राधे शक्यो प्रेम लखी नाही॥
दियो श्राप तुलसिह तत्काला। नर लोकही तुम जन्महु बाला॥
यो गोप वह दानव राजा। शङ्ख चुड नामक शिर ताजा॥
तुलसी भई तासु की नारी। परम सती गुण रूप अगारी॥
अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ। कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ॥
वृन्दा नाम भयो तुलसी को। असुर जलन्धर नाम पति को॥
करि अति द्वन्द अतुल बलधामा। लीन्हा शंकर से संग्राम॥
जब निज सैन्य सहित शिव हारे। मरही न तब हर हरिही पुकारे॥
पतिव्रता वृन्दा थी नारी। कोऊ न सके पतिहि संहारी॥
तब जलन्धर ही भेष बनाई। वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई॥
शिव हित लही करि कपट प्रसंगा। कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा॥
भयो जलन्धर कर संहारा। सुनी उर शोक उपारा॥
तिही क्षण दियो कपट हरि टारी। लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी॥
जलन्धर जस हत्यो अभीता। सोई रावन तस हरिही सीता॥
अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा। धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा॥
यही कारण लही श्राप हमारा। होवे तनु पाषाण तुम्हारा॥
सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे। दियो श्राप बिना विचारे॥
लख्यो न निज करतूती पति को। छलन चह्यो जब पार्वती को॥
जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा। जग मह तुलसी विटप अनूपा॥
धग्व रूप हम शालिग्रामा। नदी गण्डकी बीच ललामा॥
जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं। सब सुख भोगी परम पद पईहै॥
बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा। अतिशय उठत शीश उर पीरा॥
जो तुलसी दल हरि शिर धारत। सो सहस्त्र घट अमृत डारत॥
तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी। रोग दोष दुःख भंजनी हारी॥
प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर। तुलसी राधा मंज नाही अन्तर॥
व्यन्जन हो छप्पनहु प्रकारा। बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा॥
सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही। लहत मुक्ति जन संशय नाही॥
कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत। तुलसिहि निकट सहसगुण पावत॥
बसत निकट दुर्बासा धामा। जो प्रयास ते पूर्व ललामा॥
पाठ करहि जो नित नर नारी। होही सुख भाषहि त्रिपुरारी॥

॥ दोहा ॥
तुलसी चालीसा पढ़ही तुलसी तरु ग्रह धारी।
दीपदान करि पुत्र फलपावही बन्ध्यहु नारी॥
सकल दुःख दरिद्र हरिहार ह्वै परम प्रसन्न।
आशिय धन जन लड़हिग्रह बसही पूर्णा अत्र॥
लाही अभिमत फल जगत महलाही पूर्ण सब काम।
जेई दल अर्पही तुलसी तंहसहस बसही हरीराम॥
तुलसी महिमा नाम लख तुलसी सूत सुखराम।
मानस चालीस रच्यो जग महं तुलसीदास॥

 

रमा एकादशी पर इस विशेष पाठ से पाएं भगवान विष्णु का आशीर्वाद और सुख-समृद्धि –

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