लोद्रवा, जिसे लोद्रवा या लोद्रावा भी कहा जाता है, राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित एक ऐतिहासिक गांव है। यह गाँव प्राचीन काल में लोद्रवा राज्य की राजधानी था। यह स्थान जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ के मुख्य तीर्थ स्थलों में से एक है और यहाँ का जैन मंदिर स्थापत्य और ऐतिहासिक महत्व के कारण प्रसिद्ध है।
लोद्रवा का जैन मंदिर 9वीं और 10वीं शताब्दी के दौरान बना था। यह मंदिर 23वें तीर्थंकर, भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित है। यह माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भाटी राजपूत राजा रावल देवराज द्वारा किया गया था। मंदिर को कई बार आक्रमणों और विनाश के कारण पुनर्निर्मित और पुनर्स्थापित किया गया है। वर्तमान मंदिर का स्वरूप 1615 में जैसलमेर के राजा महारावल गज सिंह द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था।
लोद्रवा जैन मंदिर वास्तुकला की दिलचस्प शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें भारतीय और इस्लामी स्थापत्य शैली का मिश्रण है। मंदिर के संरचना में विस्तृत नक्काशीदार स्तंभ, तोरणद्वार, और जटिल डिजाइनों वाले गुंबद शामिल हैं। मुख्य मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की काले संगमरमर की सुंदर प्रतिमा विराजित है।
मंदिर की दीवारों पर खूबसूरत जाली का काम किया गया है, जो राजस्थान के जैन मंदिरों की एक विशिष्ट विशेषता है। मंदिर के अंदरूनी हिस्से में भगवान पार्श्वनाथ के जीवन से जुड़ी कथाएँ चित्रित की गई हैं।
लोद्रवा जैन मंदिर जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहाँ हर साल हजारों श्रद्धालु भगवान पार्श्वनाथ के दर्शन करने और उनकी पूजा करने आते हैं। मंदिर का शांत और आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं को आंतरिक शांति और भक्ति का अनुभव कराता है।
लोद्रवा का जैन मंदिर न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व का भी केंद्र है। पर्यटक यहाँ की समृद्ध इतिहास, अद्भुत वास्तुकला और धार्मिक विरासत को देखने के लिए आते हैं। लोद्रवा का जैन मंदिर जैसलमेर के मुख्य पर्यटक आकर्षणों में से एक है और इसका दौरा पर्यटकों को राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर से रूबरू कराता है।
इस प्रकार, लोद्रवा जैन मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारतीय इतिहास, संस्कृति और वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।
लोदुरवा जैन मंदिर का इतिहास – History of lodurva jain temple