प्राचीन भैरों मंदिर का इतिहास – History of prachin bhairon temple

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प्राचीन भैरों मंदिर का इतिहास - History of prachin bhairon temple

प्राचीन भैरव मंदिर, जिसे प्राचीन काल से ही शक्ति और भक्ति का केंद्र माना जाता है, भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित है और भैरव देवता को समर्पित है। भैरव, भगवान शिव के एक उग्र रूप हैं, जिन्हें विशेष रूप से तंत्र साधना में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। मंदिरों का यह समूह भैरव की विविध रूपों और उनकी शक्ति का प्रतीक है।

भैरव मंदिरों का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है, और इन्हें सामान्यत: गुप्त काल (4th-6th शताब्दी) या उससे पहले का माना जाता है। यह मंदिर विशेष रूप से तंत्र साधना, योग और शक्ति साधना के केंद्र रहे हैं। कई भैरव मंदिरों की स्थापना विभिन्न पौराणिक कथाओं और किंवदंतियों से जुड़ी है, जिनमें भगवान शिव द्वारा भैरव रूप धारण करना और विभिन्न दानवों का वध करना शामिल है।

यह मंदिर वाराणसी के सबसे प्रसिद्ध भैरव मंदिरों में से एक है। कहा जाता है कि काल भैरव वाराणसी के संरक्षक देवता हैं। इस मंदिर की स्थापना का समय अज्ञात है, लेकिन यह माना जाता है कि यह मंदिर बहुत प्राचीन है और इसे गुप्त काल या उससे पहले का माना जाता है।

उज्जैन का भैरवगढ़ मंदिर भी बहुत प्राचीन है और इसे महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ जोड़ा जाता है। यह मंदिर काल भैरव को समर्पित है और यहां तंत्र साधकों का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।

दिल्ली में स्थित यह मंदिर भैरव के अन्नपूर्णा रूप को समर्पित है। इस मंदिर का इतिहास भी बहुत पुराना है और यह माना जाता है कि यह मंदिर महाभारत काल से जुड़ा हुआ है।

भैरव मंदिरों की वास्तुकला विभिन्न कालों की स्थापत्य शैलियों का प्रतिनिधित्व करती है। ये मंदिर सामान्यतः पत्थर से बने होते हैं और इनमें मूर्तियां और तांत्रिक चिह्न होते हैं। मंदिरों के गर्भगृह में भैरव की मूर्तियां या शिवलिंग स्थापित होते हैं। कई मंदिरों में भैरव की उग्र मुद्रा में मूर्तियां होती हैं, जिनमें वे काले या नीले रंग के होते हैं और उनके हाथ में त्रिशूल, डमरू और अन्य आयुध होते हैं।

भैरव मंदिरों का धार्मिक महत्व तंत्र साधना और योग साधना से जुड़ा हुआ है। भैरव को शिव का उग्र रूप माना जाता है जो समय, मृत्यु और विनाश का प्रतीक है। भैरव की पूजा विशेष रूप से शनिवार को की जाती है, और भक्त उन्हें शराब, मांस, और अन्य बलि चढ़ाते हैं।

भैरव अष्टमी, कालाष्टमी और महाशिवरात्रि जैसे त्योहारों के दौरान भैरव मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना और आयोजन होते हैं। इन अवसरों पर भक्त बड़ी संख्या में मंदिरों में आते हैं और भैरव की कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत और अनुष्ठान करते हैं।

प्राचीन भैरव मंदिर भारतीय संस्कृति और धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि भारतीय स्थापत्य कला और तंत्र साधना की धरोहर भी हैं। भैरव मंदिरों का इतिहास, उनकी स्थापत्य कला, और उनका धार्मिक महत्व सदियों से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता रहा है और आज भी ये मंदिर भक्ति और शक्ति के केंद्र बने हुए हैं।

 

प्राचीन भैरों मंदिर का इतिहास – History of prachin bhairon temple