भारत के तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित एकंबरेश्वर मंदिर, भगवान शिव को समर्पित सबसे बड़े और सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इसका इतिहास एक सहस्राब्दी से भी पुराना है, जिसकी उत्पत्ति 7वीं शताब्दी ईस्वी में पल्लव राजवंश से होती है।
किंवदंती के अनुसार, मंदिर का नाम “एकम्बरेश्वर” संस्कृत के शब्द “एका” (जिसका अर्थ है “एक”) और “आमरा” (जिसका अर्थ है “आम का पेड़”) से लिया गया है। किंवदंती बताती है कि यहां के देवता, भगवान शिव, एक आम के पेड़ के नीचे एक शिव लिंगम के रूप में प्रकट हुए थे, जिनके बारे में माना जाता है कि उनकी पूजा देवी पार्वती द्वारा की जाती थी। समय के साथ, मंदिर परिसर का विस्तार हुआ और चोल और विजयनगर राजवंशों सहित विभिन्न शासकों ने इसकी वास्तुकला और विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मंदिर परिसर एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है और इसमें विभिन्न देवताओं को समर्पित कई मंदिर हैं। इसकी सबसे प्रमुख विशेषताओं में से एक विशाल गोपुरम (प्रवेश द्वार टॉवर) है, जो पौराणिक दृश्यों और धार्मिक रूपांकनों को चित्रित करने वाली जटिल मूर्तियों और नक्काशी से सुसज्जित है।
अपने पूरे इतिहास में, एकंबरेश्वर मंदिर में कई नवीकरण और विस्तार हुए हैं, जो विभिन्न कालखंडों की स्थापत्य शैली को दर्शाते हैं। मंदिर का महत्व इसके धार्मिक महत्व से कहीं अधिक है, क्योंकि यह प्राचीन भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और स्थापत्य कौशल के प्रमाण के रूप में खड़ा है। आज, यह एक लोकप्रिय तीर्थ स्थल और भगवान शिव की भक्ति का एक प्रतिष्ठित प्रतीक बना हुआ है।
एकंबरेश्वर मंदिर का इतिहास – History of ekambareswarar temple