भारत के मध्य प्रदेश के भोपाल में स्थित ताज-उल-मसाजिद देश की सबसे बड़ी और सबसे शानदार मस्जिदों में से एक है। ताज-उल-मसाजिद का निर्माण 19वीं शताब्दी के अंत में भोपाल की सुल्तान शाहजहाँ बेगम द्वारा करवाया गया था। वह 1868 से 1901 तक भोपाल की शासक थीं और उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान मस्जिदों, महलों और सार्वजनिक भवनों के निर्माण सहित कई वास्तुशिल्प परियोजनाओं की शुरुआत की।
ताज-उल-मसाजिद का निर्माण सुल्तान शाहजहाँ बेगम के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ था लेकिन धन की कमी के कारण रुक गया था। बाद में 20वीं सदी की शुरुआत में उनकी बेटी सुल्तान कैखुसरो जहां बेगम ने इसे फिर से शुरू किया। हालाँकि, मस्जिद उनके जीवनकाल के दौरान पूरी नहीं हुई और अंततः 1985 में भारत सरकार के सहयोग से पूरी हुई।
ताज-उल-मसाजिद मुगल और इस्लामी स्थापत्य शैली का मिश्रण प्रदर्शित करता है, जिसकी विशेषता इसके भव्य गुंबद, मीनारें और जटिल संगमरमर की नक्काशी है। मस्जिद का निर्माण लाल बलुआ पत्थर, संगमरमर और ग्रेनाइट से किया गया है, जो इसे एक राजसी रूप देता है।
मस्जिद में एक विशाल प्रांगण, एक बड़ा प्रार्थना कक्ष और सफेद संगमरमर से सजाए गए तीन भव्य गुंबद हैं। केंद्रीय गुंबद सबसे बड़ा है, जिसकी ऊंचाई लगभग 206 फीट है, जो इसे एशिया की सबसे ऊंची मस्जिद गुंबदों में से एक बनाती है। मस्जिद में चार ऊंची मीनारें भी हैं, जिनमें से प्रत्येक की ऊंचाई लगभग 206 फीट है।
ताज-उल-मसाजिद को भोपाल में इस्लामी विरासत और धार्मिक सद्भाव का प्रतीक माना जाता है। यह स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लिए पूजा स्थल के रूप में कार्य करता है और भारत और दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करता है जो इसकी वास्तुकला की सुंदरता और आध्यात्मिक माहौल की प्रशंसा करने आते हैं।
वर्षों से, ताज-उल-मसाजिद को एक सांस्कृतिक विरासत स्थल के रूप में संरक्षित और बनाए रखने के प्रयास किए गए हैं। मस्जिद की संरचना और सजावटी तत्वों की मरम्मत और नवीनीकरण के लिए पुनर्स्थापना परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए इसकी दीर्घायु सुनिश्चित की जा सके।
ताज-उल-मसाजिद भोपाल की समृद्ध सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत के प्रमाण के रूप में खड़ा है और सभी धर्मों के लोगों के लिए श्रद्धा और प्रेरणा का स्थान है।
ताज-उल-मसाजिद का इतिहास – History of taj-ul-masajid