भैरों मंदिर, जिसे अक्सर भैरवनाथ मंदिर या भैरव मंदिर के रूप में जाना जाता है, भारत के विभिन्न हिस्सों में एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जो भगवान शिव के उग्र स्वरूप भगवान भैरव को समर्पित है। भैरों मंदिरों का इतिहास और महत्व उनके स्थान के आधार पर बहुत भिन्न हो सकता है।
काठमांडू घाटी में स्थित यह मंदिर एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यह जीवित देवी कुमारी से जुड़ा है और भैरव को संरक्षक देवता माना जाता है। मंदिर का निर्माण संभवतः मध्ययुगीन काल में किया गया था और यह क्षेत्र की समृद्ध नेवारी वास्तुकला को दर्शाता है। यह इंद्र जात्रा उत्सव के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
जम्मू में प्रसिद्ध वैष्णो देवी मंदिर के पास, भैरव मंदिर तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण महत्व रखता है। मान्यता के अनुसार, भैरव मंदिर के दर्शन के बिना वैष्णो देवी की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती है। यह मंदिर भगवान शिव के एक स्वरूप काल भैरव को समर्पित है, और अहंकार और भय के उन्मूलन का प्रतीक है।
यह प्राचीन मंदिर अपने ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह तमिलनाडु में स्थित भगवान भैरव के आठ पवित्र मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का ऐतिहासिक संबंध चोल और विजयनगर साम्राज्यों से है, जो कला और वास्तुकला के संरक्षण के लिए जाने जाते हैं।
पवित्र शहर वाराणसी में स्थित, यह मंदिर भगवान शिव के एक रूप भैरो नाथ को समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि इसकी स्थापना हिंदू महाकाव्य महाभारत के नायक पांडवों ने की थी। यह मंदिर वाराणसी के धार्मिक परिदृश्य में एक अद्वितीय स्थान रखता है और यहां हजारों भक्त आते हैं।
यह प्राचीन मंदिर उज्जैन की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का हिस्सा है। यह हिंदू धर्म के भीतर तांत्रिक परंपराओं से जुड़ा हुआ है और शहर के आठ भैरव मंदिरों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
इनमें से प्रत्येक मंदिर की अपनी अनूठी वास्तुकला, अनुष्ठान और किंवदंतियाँ हैं, जो भारतीय उपमहाद्वीप में भगवान भैरव की पूजा करने के विविध तरीकों को दर्शाती हैं। इन सभी मंदिरों में आम बात भगवान भैरव की श्रद्धा है, एक देवता जो अपने उग्र रूप के लिए जाने जाते हैं और रक्षक और बाधाओं को दूर करने वाले माने जाते हैं।
भैरों मंदिर का इतिहास – History of bhairon temple