भारत के गुजरात राज्य में जूनागढ़ के पास स्थित गिरनार पर्वत को जैन धर्म में एक पवित्र तीर्थ स्थल माना जाता है। यह पर्वत मंदिरों के एक समूह का घर है जिसे श्री गिरनार तीर्थ के नाम से जाना जाता है।
गिरनार पर्वत को हजारों वर्षों से एक पवित्र स्थल माना जाता है, और इसका धार्मिक महत्व जैन धर्म के आगमन से पहले का है। जैन परंपरा में, पर्वत कई तीर्थंकरों (आध्यात्मिक शिक्षकों) से जुड़ा हुआ है और तीर्थयात्रा के लिए सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है।
सदियों से, गिरनार पर्वत पर कई जैन मंदिरों का निर्माण किया गया है, जिससे यह जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल बन गया है। मंदिर विभिन्न तीर्थंकरों को समर्पित हैं, और प्रत्येक मंदिर का अपना अनूठा इतिहास और महत्व है।
गिरनार पर्वत पर प्रमुख मंदिरों में से एक नेमिनाथ मंदिर है, जो 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ को समर्पित है। यह मंदिर अपनी जटिल वास्तुकला और भारत के विभिन्न हिस्सों से तीर्थयात्रियों को आकर्षित करने में अपनी भूमिका के लिए जाना जाता है।
मल्लीनाथ मंदिर गिरनार पर्वत पर एक और महत्वपूर्ण जैन मंदिर है। यह 19वें तीर्थंकर भगवान मल्लिनाथ को समर्पित है। मंदिर परिसर में कई छोटे मंदिर और संरचनाएं शामिल हैं।
गिरनार पर्वत के उच्चतम बिंदु पर गोरखनाथ शिखर है, जिसे जैन और हिंदू दोनों द्वारा पवित्र माना जाता है। शिखर पर गुरु गोरखनाथ को समर्पित एक छोटा मंदिर है।
तीर्थयात्री पारंपरिक रूप से भक्ति और तपस्या के रूप में गिरनार पर्वत पर मंदिरों तक जाने वाली 3,800 सीढ़ियाँ चढ़ते हैं। चढ़ाई अक्सर गिरनार परिक्रमा के दौरान की जाती है, जो पर्वत की वार्षिक परिक्रमा है।
गिरनार पर्वत ध्यान और धार्मिक अध्ययन सहित विभिन्न आध्यात्मिक प्रथाओं के लिए एक स्थान के रूप में कार्य करता है। यह जैन भिक्षुओं और विद्वानों के लिए धार्मिक और दार्शनिक चर्चाओं का केंद्र रहा है।
गिरनार पर्वत पर स्थित मंदिर न केवल पूजा स्थल हैं बल्कि गुजरात की सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी दर्शाते हैं।
श्री गिरनार तीर्थ का इतिहास इस क्षेत्र में जैन धर्म के इतिहास के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। गिरनार पर्वत की तीर्थयात्रा जैन भक्तों के लिए एक पवित्र यात्रा मानी जाती है, और मंदिर आध्यात्मिक सांत्वना और ज्ञान की तलाश करने वाले आगंतुकों को आकर्षित करते रहते हैं।
श्री गिरनार तीर्थ का इतिहास – History of shri girnar tirtha