पूजा के अन्त में आरती की जाती है| पूजन में जो त्रुटि रह जाती है, आरती से उसकी पूर्ति होती है| पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी आरती कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है| आरती करने का ही नहीं, आरती देखने का भी बड़ा पुण्य होता है| जो धूप और आरती को देखता है और दोनों हाथों से आरती लेता है, वह समस्त पीदियों का उद्धार करता है और भगवान् विष्णु के परमपत को प्राप्त होता है|
आरती क्या है और कैसे करनी चाहिए? इस प्रकार है:
साधारणत: पाँच बत्तीयों से आरती की जाती है, इसे ‘ पंचप्रदिप’ भी कहते है| एक सात या उससे भी अधिक बत्तीयों से भी आरती की जाती है| कपूर से भी आरती होती है| कुमकुम, अगर, कपूर धुत और चन्दन, पाँच बत्तीयों अथवा दीए की ( रुई और घी की ) बत्तियाँ बनाकर शंख, घंटा आदि बजाते हुआ आरती करनी चाहिए|
आरती उतारते समय सवर्प्रथम भगवान् की प्रतिमा के चरणों में उसे चार बार घुमाएँ, दो बार नाभिदेश में, एक बार मुखमण्डल पर और सात बार समस्त अंगों पर घुमाएँ| यथार्थ में आरती, पूजन के अन्त में इष्ट देवता की प्रसन्नता हेतु की जाती है| इसमें इष्टदेव को दीपक दिखाने के साथ ही उनका स्तवन तथा गुणगान किया जाता है|