गुरु गोरखनाथ जी की जीवनी एवं इतिहास

गुरु गोरखनाथ
भारत की भूमि ऋषि-मुनियो और तपस्वियों की भूमि रही है। जिन्होंने अपने बौद्धिक क्षमता के दम पर भारत ही नहीं वरन सम्पूर्ण सृष्टि के भलाई के लिए बहुत योगदान दिया है। ऋषि-मुनियो के शिक्षा से हमें जीवन में सही राह चुनने का ज्ञान होता है। साधु महात्माओ द्वारा दिए गए ज्ञान-विज्ञान 21 वी सदी में भी बहुत प्रासंगिक हैं।

महापुरुषों में ऐसे कई ऋषि-मुनि हुए जो बचपन से ही दैविये गुणों के कारण या तपस्या के फलस्वरूप कई प्रकार की सिद्धियाँ व शक्तियां प्राप्त कर लेते थे, जिनका उपयोग मानव कल्याण तथा धर्म के रक्षार्थ हेतु हमेशा से किया जाता रहा है।

यह सिद्धियाँ और शक्तियाँ ऋषि-मुनियों को एक चमत्कारी तथा प्रभावी व्यक्तित्व प्रदान करती हैं और ऐसे सिद्ध योगियों के लिए भौतिक सीमाए किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं कर पाती है।

पर इन शक्तियों को प्राप्त करना सहज नहीं है| परमशक्तिशाली ईश्वर द्वारा इन सिद्धियों के सुपात्र को ही एक कड़ी परीक्षा के बाद प्रदान किया जाता है। आज हम ऐसे एक सुपात्र सिद्ध महापुरुष जो साक्षात् शिवरूप माने जाते हैं के बारे में बात करेंगे| इनके बारे में कहा जाता है कि आज भी वह सशरीर जीवित हैं और हमारे पुकार को सुनते हैं और हमें मुसीबतो से पार भी लगाते हैं। हम बात कर रहे हैं महादेव भोलेनाथ के परम भक्त –

गोरखनाथ शब्द का अर्थ
गुरु गोरखनाथ को गोरक्षनाथ के नाम से भी जाना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ “गाय को रखने और पालने वाला या गाय की रक्षा करने वाला” होता है। सनातन धर्म में गाय का बहुत ही धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि गाय के शरीर में सभी 33 करोड़ देवी-देवता निवास करते है। भारतीय संस्कृति में गाय को माता के रूप में पूजा जाता है।

गुरु गोरखनाथ समाधि
गुरु गोरखनाथ के नाम पर उत्तरप्रदेश में गोरखपुर नगर है। गुरु गोरखनाथ ने यहीं पर अपनी समाधि ली थी। गोरखपुर में बाबा गोरखनाथ का एक भव्य और प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर पर मुग़ल काल में कई बार हमले हुए और इसे तोड़ा गया लेकिन हर बार यह मंदिर गोरखनाथ जी के आशीर्वाद से अपने पूरे गौरव के साथ खड़ा हो जाता।

बाद में नाथ संप्रदाय के साधुओं द्वारा सैन्य टुकड़ी बना कर इस मंदिर की दिन रात रक्षा की गई। भारत ही नहीं नेपाल में भी गोरखा नाम से एक जिला और एक गोरखा राज्य भी है | कहा जाता है कि गुरु गोरखनाथ ने यहाँ डेरा डाला था जिस वजह से इस जगह का नाम गोरखनाथ के नाम पर पड़ गया तथा यहाँ के लोग गोरखा जाति के कहलाये|

गुरु गोरखनाथ के जन्म से जुड़ी असाधारण बात
गुरु गोरखनाथ का जन्म स्त्री गर्भ से नहीं हुआ था बल्कि गोरखनाथ का अवतार हुआ था। सनातन ग्रंथो के अनुसार गुरु गोरखनाथ हर युग में हुए है तथा उनको महान चिरंजीवियों में से एक गिना जाता है |

गुरु गोरखनाथ की उत्पत्ति गहन शोध का विषय है कई मॉडर्न इतिहासकारो का मानना है कि भगवान राम और श्री कृष्ण की तरह ही गुरु गोरखनाथ एक काल्पनिक किरदार हैं और कई इतिहासकारों का कहना है कि गुरु गोरखनाथ का काल 9 वी शताब्दी के मध्य में था।

लेकिन सनातन पंचांग जो दुनिया का एकमात्र वैज्ञानिक कैलेंडर है की माने तो गुरुगोरखनाथ सभी युगो में थे तथा भगवान् श्री राम और भगवान् श्री कृष्ण से संवाद भी स्थापित किये थे |

रोट उत्सव से जुड़ी रोचक जानकारी
नेपाल के गोरखा नामक जिला में एक गुफा है जिसके बारे में कहा जाता है की गुरु गोरखनाथ ने यहाँ तपस्या की थी आज भी उस गुफा में गुरु गोरखनाथ के पगचिन्ह मौजूद है साथ ही उनकी एक मूर्ति भी है। इस स्थल पर गुरु गोरखनाथ के स्मृति में प्रतिवर्ष वैशाख पूर्णिमा को एक उत्सव का योजन होता है जिसे बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। इस उत्सव को “रोट उत्सव” के नाम से जाना जाता है। नेपाल नरेश नरेन्द्रदेव भी गुरु गोरखनाथ के बहुत बड़े भक्त थे| वह उनसे दिक्षा प्राप्त कर उनके शिष्य बन गए थे।

तेजवंत गुरु मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गोरखनाथ
शंकर भगवान को नाथ संप्रदाय के संस्थापक कहा जाता है | जिसके आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय थे | भगवान् दत्तात्रेय के शिष्य मत्स्येन्द्रनाथ थे | वह ध्यान धर्म और प्रभु उपासना के उपरांत भिक्षाटन कर के जीवन व्यतीत करते हैं |

एक बार भिक्षाटन करते हुए एक गाँव में गए | उन्होंने एक घर के बहार आवाज़ लगाई| घर का दरवाजा खुला और एक महिला ने मत्स्येन्द्रनाथ को अन्न दान किया और प्रणाम करते हुए कहा कि मेरा पुत्र नहीं है और आशीर्वाद माँगा कि मुझे एक पुत्र चाहिए जो वृद्धावस्था में मेरा उद्धार कर सके |

मत्स्येन्द्रनाथ ने उस स्त्री को चुटकी भर भभूत दिया और बोले की इसका सेवन कर लो यथासमय तुम्हे जरूर पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी जो बहुत ही धार्मिक होगा और उसकी ख्याति देश-विदेश में बढ़ेगी। ऐसा आशीर्वाद देकर मत्स्येन्द्रनाथ अपने यात्रा क्रम में भिक्षाटन करते हुए आगे बढ़ गए |

लगभग बारह वर्ष पश्चात् गुरु मत्स्येन्द्रनाथ यात्रा करते हुए उसी गांव में पहुंचे| भिक्षाटन करते हुए जब मत्स्येन्द्रनाथ उस घर के समीप गए तो उन्हें वो स्त्री याद आई जिसको उन्होंने भभूत खाने के लिए दिया था |

द्वार पर आवाज लगाने के बाद वही स्त्री बहार आई। गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ने बालक के बारे में पूछा तो स्त्री सकपका गई, डर और लज़्ज़ा के मारे उसके मुख से वाणी नहीं निकल रही थी |

हिम्मत करते हुए स्त्री ने बताया कि,

आप जब भभूत देकर गए तो आस-पड़ोस की महिलाएँ मेरा उपहास करने लगीं कि, मैं साधु-संतो के दिए हुए भभूत पर विश्वास करती हूँ… इसलिए, मैंने उस भभूत को सेवन करने के बजाय गोबर पर फेंक दिया |

तब, गुरु मत्स्येंद्रनाथ ने अपने योगबल से पूर्ण स्थिति को जान लिया | उसके बाद वह चुपचाप उस तरफ बढे जिस तरफ उस स्त्री ने भभूत फेंका था |

उस जगह पहुँच कर उन्होंने आवाज लगाई और तभी एक तेज से परिपूर्ण ओजस्वी 12 वर्ष का बालक दौड़ता हुआ गुरु मत्स्येन्द्रनाथ के पास आ गया और गुरु मत्स्येन्द्रनाथ उस बालक को लेकर अपने साथ चल दिए |

यही बालक आगे चल कर गुरु गोरखनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। महायोगी गोरखनाथ को मत्स्येन्द्रनाथ का मानस पुत्र और शिष्य दोनों कहा जाता है।

नाथ संप्रदाय का एकत्रीकरण एवं विस्तरण
गुरु गोरखनाथ और मत्स्येन्द्रनाथ से पहले नाथ संप्रदाय बहुत बिखरा हुआ था | इन दोनों ने नाथ संप्रदाय को सुव्यवस्थित कर इसका विस्तार किया | साथ ही मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गोरखनाथ ने नाथ संप्रदाय का एकत्रीकरण किया। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इसी समुदाय से आते हैं। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री होने के साथ साथ नाथ संप्रदाय के प्रमुख महंत भी है।

गुरु गोरखनाथ को हठ योग और नाथ संप्रदाय का प्रवर्तक कहा जाता है। जो अपने योगबल और तपबल से सशीर चारों युग में जीवित रहते हैं। गोरखनाथ और मत्स्येंद्रनाथ को 84 सिद्धों में प्रमुख माना जाता है।

गुरु गोरखनाथ साहित्य के पहले आरम्भकर्ता थे। उन्होंने नाथ साहित्य की सर्वप्रथम शुरुआत की। इनके उपदेशो में योग और शैव तंत्रो का समावेश है। गुरु गोरखनाथ ने पूरे भारत का भ्रमण किया तथा लगभग चालीस रचनाओं को लिखा था।

गुरु गोरखनाथ के जीवन प्रसंग
एक बार गुरु गोरखनाथ जंगल के मध्य में स्थित एक पहाड़ पर महादेव की तपस्या में लीन थे। गोरखनाथ की इस भक्ति को देखकर माता पार्वती ने भगवान शंकर से पूछा कि यह कौन है जो आपको प्रसन्न करने के लिए इतनी कठिन तपस्या कर रहा है?
तब महादेव ने माता पार्वती को बताया –
जनकल्याण और धर्म की रक्षा करने के लिए मैंने ही गोरखनाथ के रूप में अवतार लिया है |
इसीलिए महान योगी गोरखनाथ को “शिव का अवतार” भी कहा जाता है |
त्रेता युग
त्रेतायुग में गोरखपुर में गुरु गोरखनाथ का आश्रम था | सनातन ग्रंथो के अनुसार श्री राम के राजयभिषेक का निमंत्रण गुरु गोरखनाथ के पास भी गया था और वह उत्सव में सम्मिलित भी हुए थे|

द्वापर युग
कई हिन्दू ग्रंथो के अनुसार द्वापरयुग में जूनागढ़, गुजरात स्थित गोरखमढ़ी में गुरु गोरखनाथ ने तप किया था और इसी स्थान पर श्री कृष्ण और रुक्मणि का विवाह भी सम्पन्न हुआ था। गुरु गोरखनाथ ने देवताओ के अनुरोध पर द्वापरयुग में श्री कृष्ण और रुक्मणि के विवाह समारोह में भी अपनी उपस्थिति दी थी |

कलयुग
कलयुग काल के दौरान कहा जाता है कि राजकुमार बाप्पा रावल किशोरावस्था में एक बार घूमते-घूमते बीच बीहड़ जंगलो में पहुंच गए वहाँ उन्होंने एक तेजस्वी साधु को ध्यान में बैठे हुए देखा जो की गोरखनाथ बाबा थे |

गुरु गोरखनाथ के तेज से प्रभावित होकर बाप्पा रावल ने उनके निकट ही रहना प्रारम्भ कर दिया और उनकी सेवा प्रारम्भ कर दी कुछ दिन बाद जब गोरखनाथ का ध्यान टूटा तो बाप्पा रावल की सेवा से वह प्रसन्न हुए और उन्हें एक तलवार आशीर्वाद के रूप में दी | बाद में इसी तलवार से मुगलों को हराकर चित्तोड़ राज्य की स्थापना बाप्पा रावल ने की |

गुरु गोरखनाथ महिमा
आज भी बड़ी संख्या में लोग गुरु गोरखनाथ गोरखनाथ के प्रति अटूट विश्वास और आस्था रखते हैं| और यह श्रद्धा सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे नेपाल और पाकिस्तान के कुछ भागों में भी लोग बाबा गोरखनाथ के मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं. खिचड़ी या मकरसंक्रांति के पर्व पर गोरखपुर के प्रसिद्द गोरखनाथ मंदिर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु लाखों की संख्या में खिचड़ी का चढ़ाव चढाते हैं|

नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक गुरु गोरखनाथ जी के बारे में पुराणों में तो उल्लेख मिलता ही है साथ ही परम्पराओं, जनश्रुतियों, लोक कथाओं आदि में भी गोरखनाथ बाबा का उल्लेख खूब मिलता है। यह लोक कथाएं भारत के साथ-साथ काबुल, सिंध, बलोचिस्तान, नेपाल,भूटान आदि देशो में भी प्रसिद्ध हैं।

नाथ साहित्य
इन्ही किवदंतियो से हमें यह पता चलता है कि गुरु गोरखनाथ ने भारत से बहार नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान, मक्का-मदीना, इत्यादि जगहों तक लोगों को दीक्षित किया था और “नाथ साहित्य” के माध्यम से लोगो को शिक्षित भी किया था।

गुरु गोरक्षनाथ जी ने अपनी रचनाओं में तपस्या, स्वाध्याय और ईश्वर-उपासना को अधिक महत्व दिया है साथ ही हठ योग का भी उपदेश दिया। नाथ साहित्य के प्रमुख कवियों में –
चौरंगीनाथ
गोपीचंद,
भरथरी, आदि
का नाम आता है। नाथ साहित्य की रचनाएँ साधारणतः दोहों अथवा पदों में प्राप्त होती हैं और कहीं-कहीं चौपाई का भी प्रयोग मिलता है।

परवर्ती संत-साहित्य पर सिद्धों और विशेषकर नाथों के नाथ साहित्य का गहरा प्रभाव पड़ा है | गुरु गोरखनाथ द्वारा रचित 40 रचनाएँ हैं | हिंदी भाषा के शोधकर्ता डॉक्टर “बड़थ्वाल जी” ने बड़ी खोजबीन के बाद इनमें से 14 रचनाओं को अति प्राचीन बताया है |
वहीँ, 13वीं पुस्तक “ज्ञान चौंतीसी” अनुपलब्ध होने के कारण प्रकाशित नहीं हो पाई है | बाकी की तेरह रचनाएं गोरखनाथ जी की रचना समझकर प्रकाशित की गयी है जो इस प्रकार है – सबदी, पद, शिष्यदर्शन, प्राण-सांकली, नरवै बोध, आत्मबोध, अभयमात्रा जोग, पंद्रह तिथि, सप्तवार, मंच्छिद्र गोरख बोध, रोमावली, ज्ञान तिलक, ज्ञान चौतींसा आदि।

जय जय श्री गुरु गोरखनाथ जी

Leave a Reply