• महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तथा अंतिम तीर्थंकर थे। वे बुद्ध के बाद भारतीय गास्तिक आचार्यों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। महावीर का जन्म 540 बी.सी.ई में वैशाली के कुण्डाग्राम में हुआ था।
• महावीर के पिता का नाम सिद्धार्थ था, जो वण्जिसंघ के एक राज्य कुण्डाग्राम के ज्ञातृक क्षत्रिय थे। महावीर के बचपन का नाम वर्धमान (महावीर स्वामी) पहले ऋषभदत्त नामक ब्राह्मण की पत्नी देवनंदा के गर्भ में आयो परंतु चूंकि अभी तक सारे तीर्थंकर क्षत्रिय वंश के थे।
• कल्पसूत्र के अनुसार ज्योतिषियों महावीर के लिए भी चक्रवर्ती राजा था महान सन्यायी बनाने की भविष्यवाणी की थी। महावीर के पुत्री का नाम प्रियदर्शना (अणोज्जी) था।
• महावीर के दामाद जामालि था, जिसे महावीर स्वामी ने स्वयं दीक्षिण किया था। इस प्रकार संभवतः जामालि महावीर स्वामी का प्रथम शिष्य था।
• महावीर के केवल्य (ज्ञान) प्राप्ति के 14वें वर्ष में जामालि ने विद्रोह किया और एक अलग बहुतरवाद चलाया। विद्रोह का कारण कियमाणकृत सिद्धांत कार्य होते ही पूरा हो जाना था। अतः जामालि ने बहुतरवाद चलाया। जामाति के दो वर्षों बाद तीसगुप्त ने जैन धर्म में दूसरा विद्रोह किया।
• महावीर ने 30 वर्ष की आयु में अपने बड़े भाई राजा नदिवर्धन से आशा लेकर गृह त्याग किया और कठिन तपस्या की।
•. कल्पसूत्र एवं आचरंग सूत्र में महावीर के कठोर तपश्चर्या एवं कायावलेश का वर्णन है। कल्पसूत्र से पता चलता है कि प्रारम्भ में महावीर ने 1 वर्ष 1 माह तक वस्त्र धारण कर तपस्या किया और उसके पश्चात् वस्त्र त्यागकर नंगे रहने लगे एवं भोजन हथेली पर लेना शुरू किया।
• तपस्वी वेश में महावीर भ्रमण करते हुए नालन्दा पहुंच जहाँ उनकी मुलाकात गवस्खलिगोशाल से हुई। यह महावीर का शिष्य बन गया, किंतु 6 वर्षों के बाद गोशाल ने उनका साथ छोड़कर एक अलग आजीवक सम्प्रदाय की स्थापना की।
• 12 वर्ष कठोर तपस्या के बाद 42वें वर्ष में जन्धिका ग्राम में समीप हजुपालिका नदी के तट पर साल के वृक्ष केनीचे वर्धमान को केवल्प (ज्ञान) प्राप्त हुआ।
•. केवल्य (ज्ञान) की प्राप्ति के बाद वे केवलिन कहलाए, अपनी समस्त इन्द्रियों को जीतने के कारण जन कहलाए तथा अतुल पराक्रम दिखाने के कारण वे महावीर कहे गए। बौद्ध धर्म के ग्रंथों में महावीर स्वामी को ‘निगण्ठनाथपुत्र कहा गया है।