गुरुद्वारा बंगला साहिब असल में एक बंगला है, जो 17 वी शताब्दी के भारतीय शासक, राजा जय सिंह का था और जयसिंह पुर में, जयसिंहपुर पैलेस के नाम से जाना जाता था। इसके बाद कनौट पैलेस बनाने के लिये शासको ने अपने पडोसी राज्यों को ध्वस्त किया था।
आठवे सिक्ख गुरु, गुरु हर कृष्ण 1664 में दिल्ली में रहते समय यहाँ रुके थे। इस समय, चेचक और हैजा की बीमारी से लोग पीड़ित थे और गुरु हर कृष्ण ने बीमारी से पीड़ित लोगो की सहायता उनका इलाज कर और उन्हें शुद्ध पानी पिलाकर की थी। जल्द ही उन्हें भी बीमारियों ने घेर लिया था और अचानक 30 मार्च 1664 को उनकी मृत्यु हो गयी। इस घटना के बाद राजा जय सिंह ने एक छोटे पानी के टैंक का निर्माण जरुर करवाया था।
यह गुरुद्वारा और यहाँ का सरोवर सिक्खों के लिए एक श्रद्धा का स्थल है और हर साल गुरु हर कृष्ण की जयंती पर यहाँ विशेष मण्डली का आयोजन किया जाता है।
इस भूमि पर गुरूद्वारे के साथ-साथ एक रसोईघर, बड़ा तालाबं एक स्कूल और एक आर्ट गैलरी भी है। और बाकी सभी दुसरे सिक्ख गुरुद्वारों की तरह यहाँ भी लंगर है, और सभी धर्म के लोग लंगर भवन में खाना खाते है। लंगर (खाने को) गुरसिख द्वारा बनाया जाता है, जो वहाँ काम करते है और साथ ही उनके साथ कुछ स्वयंसेवक भी होते है, जो उनकी सहायता करते है।
गुरुद्वारा में दर्शनार्थियों को अपने सिर के बालो को ढँक देने के लिए और जूते ना पहनकर आने के लिए कहा जाता है। विदेशियों और दर्शनार्थीयो की सहायता के लिए गाइड भी होते है, जो बिना कोई पैसे लिए लोगो की सहायता करते है। गुरुद्वारा के बाहर सिर का स्कार्फ हमेशा रखा होता है, लोग उसका उपयोग अपने सिर को ढकने के लिए भी कर सकते है। स्वयंसेवक दिन-रात दर्शनार्थीयो की सेवा करते रहते है और गुरूद्वारे को स्वच्छ रखते है।
वर्तमान में गुरूद्वारे और लंगर हॉल में एयर कंडीशनर भी लगाये गये है। और नये “यात्री निवास” और मल्टी-लेवल पार्किंग जगह का निर्माण भी किया गया है। वर्तमान में टॉयलेट की सुविधा भी उपलब्ध है। गुरूद्वारे के पिछले भाग को भी ढक दिया गया है, ताकि सामने से गुरुद्वारा काफी अच्छा दिखे।