श्री सीता राम जी की आरती|

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जुगल छबिकी आरती करूँ नीकी|
गौर बरन श्रीजनक ललीकी,

स्याम बरन सिय पीकी|
मुकुट चंद्रिका में द्युति राजै,

अगनित सूर्य ससीकी|
सुन्दर अंग अंग में छबि है,

कोटिन काम रतीकी|
जुगल रूप में सबही पटतर,

उपमा हो गई फीकी|
रामेश्वर लखि ललित जुगल,

छबि हुलसत हिय सबकी की|